‘गिलहरियां’
छत पर उछल कूद करती,
अठखेलियां करती,
मानो उनका एक दूसरे से कुछ
कहना,फिर पास आती,
दबे पांव,कुछ ढूंढती,
और फिर जरा सी
आहत से,उछल कर दूसरे
छोर चली जाती।
ये गिलहरियां
कितनी अबोध नज़र आती हैं
क्षण भर के लिए,
और दूसरे ही क्षण मानो,
सचेत हों, हर
आगामी मुश्किल से...।।।
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