मुझे ऐसी शराब बता ऐ दोस्त
जिससे मैं नशा-ए-इश्क़ उतार पाऊँ
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कौन कहता है शराब का नशा खराब होता है।
तब भी नहीं जब ये बेहिसाब होता है।
जब इश्क के नशे में ज़ुल्मत आती है तो,
शराब का नशा ही आफताब होता है।
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बातें खूबसूरत थीं,
और सूरत भी लाजवाब थी।
नशे में चूर हो गया,
आँखें उसकी शराब थी।।
चलो अच्छा हुआ,
जो नशा उतर गया उसका।
अच्छी तो बहुत थी,
पर सेहत के लिए खराब थी।।-
बेशक़ तेरे महफ़िल का शाम नहीं हूँ मैं,
पर गलतफहमी न पाल,
आम नहीं हूँ मैं,
मेरे इश्क़ के नशे का एक घूंट चाहिए 'तुम्हें'...
ख़्वाब छोड़ो...
इतना सस्ता जाम नहीं हूँ मैं-
बेशक चली जाओ तुम,पर एक जवाब दोगी क्या?
गम तो देकर जा रही हो,थोड़ी शराब दोगी क्या??-
फिर ना कोई तोड़ पाए दिल
बस इतना खराब होना है
देख लिया खुली किताब बन कर
अब महंगी शराब होना है-
अब चाहे वो दिल के मेरे पास है, या नज़रों से दूर है,
चाहे बड़ा मगरूर है या हालतों से वो, कुछ मज़बूर है,
हमें 'शराबी' बनाने मे बस एक, उनका ही हाथ है यारों,
कुछ उनके 'बेचैनियों' का तो कुछ 'निगाहों' का कसूर है..
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ना शराब पीते हैं...
ना ही सिगरेट पीते हैं...
हम सच्चे आशिक हैं, साहब...
जुदाई का जहर पीते हैं...-
Mai चाय ka nasha krne walo mai se tha,
Is kambhakt ishq ne शराबी bna dia..-
शराब का नशा तो हल्का हैं उतर जाएगा,
इश्क़ का नशा चढ़ा कर देखो ता- उम्र चढ़ा रहेगा।-