सीमायें सुनसान पड़ी हैं, सरहद पे सन्नाटे है, सांसो के इस जंग में कितने, मेरे अपने जख्मी हो गये हैं, वक्त ने क्या करवट बदली है, जो घर जाने को तरसते थे, अब घर में कैदी हो गये हैं ।
मंजर तो अद्भुत ना था आज , गलियों में पसरा सन्नाटा था आज। कैसी है ये विपदा,जिसने हर कोने को वीरान किया, बच्चों की किलकारियों को भी इसने है सुनसान किया । उफ़्फ़!!! हाये रे कुदरत कैसी ये तेरी माया है, अंधेरों में सिमटा हर इंसान का काया है । सुनों अब जो होना था वो तो हो गया, कल फिर एक मासूम भूखा पेट सो गया । #पंडित