महा प्रतापी, परम तेजस्वी, तू शूरवीर एक योद्धा था,
जिसने अंतिम सांसों तक जीत का परचम लहराया था।
चौदह वर्ष की आयु में ही तुम महान रचनाकार बने,
बुद्धभूषण, नखशिख, नायिकाभेद जैसे ग्रंथ लिखे।
कांतिवान तेजस्वी आभा एक तेज सिंह का छाया था,
महा पराक्रमी परम प्रतापी तू उस वीर शिवा का लाला था।
निकल गईं आँखें तेरी पर दिव्य उन्नति का स्वप्न गया नहीं,
कटी जिह्वा घायल थी पर तुमने राष्ट्र का सौदा किया नहीं।
लहूलुहान हाथ हो गए फिर भी सत्कर्म तेरा रुका नहीं,
मस्तक कट गया फिर भी तू मुगलों के आगे झुका नहीं।
देश-धर्म पर मिटने के खातिर तुमने जो बलिदान दिया,
दोनों पैर कटाए फिर भी पदचिह्न सममार्ग से नहीं मिटा।
नाखून उखड़े, बाल उड़े और अंग खंडों में भंग हुए,
देह से छाल खींच ली गई पर धधकती ज्वाला बुझी नहीं।
शस्त्रों में निपुण महापराक्रमी तू धर्मवीर कहलाया था,
हिंदू स्वराज्य का रखवाला तू एक ही शंभू राजा था।
अपना जीवन त्यागकर तुमने इस मातृभूमि को बचाया था,
है बारम्बार तुमको नमन जो तू इस धरा पर आया था।
अमर हुआ तेरा बलिदान, तुम भारत के वीर सपूत हो,
हर माँ चाहे उसे भी तुझ जैसा बालक निर्भीक हो।
वर्षों बीत गए संभाजी, आज भी गूंजती तेरी विजय नाद है,
तेरे इस बलिदान को हमारा कोटि-कोटि बार प्रणाम है।-
पुरंदर किल्ल्यावरी एक युगसूर्य उगविला
स्वराज्याचे पहिले युवराज शिवपुत्र जन्मले
काळाच्या ओघाणे ज्यांची मातृछाया हि छिनली
बाळपण त्याग करुनी त्यानी युद्धनीति जनली
बुधभूषण, नखशीख असे साहित्य ज्यानी रचली
शिवरायांन नंतर ही त्यानी स्वराज्य अबादीत राखिले
शत्रु बरोबर ते नऊ वर्ष जिद्दीने शौर्यने जे लढले
शंभर युद्ध जिंकुन ही अजिंक्य ते राहिले
अखेर आपल्याच लोकांच्या फितूरी पुढे जे हरले
शेवटीच्या स्वासापर्यंत त्यानी स्वराज्यधर्म राखिले
असा धर्मवीर, अजिंक्यवीर, शिवपुत्र शंभुराजे जाहले-
Chhatrapati Sambhaji Maharaj : The fearless son of Chhatrapati Shivaji Maharaj
( Poem in Caption )
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An emperor by heart,
who ruled for Swaraj,
An honorable figure in our history—
Chhatrapati Sambhaji Maharaj.
(Captioned)-
दिल्लीश्वर औरंग्यावर भारी पडले शिवपुत्र धर्मवीर छत्रपती संभाजीराजे भोसले.....
धर्मवीर संभाजीराजे भोसले यांच्या 332 व्या बलिदान निमित्त कोटी कोटी प्रणाम...🙏🙏💐💐
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जीजाबाई के आँचल में, जिसका बचपन बीता था
सौ से ज्यादा युद्ध लड़े थे, सबको जिसने जीता था
मुग़लों के बंदीगृह से जो, बचपन में ही छूट गया
भगवा ध्वज लेकर निकला, स्वराज बनाने जुट गया
दिल्ली से दक्खन तक बजता, जिसका गाजा बाजा था
वीर शिवाजी का बेटा वो, अपना शंभू राजा था-
मैत्री असावी तर..
शंभु राजे आणि कवि कलशांसारखी.
ढाळ बनून स्वराज्याच्या धाकल्या धन्याची रक्षा करणारी.
गरज पडता मायेची उब बनणारी.,
सवंगडी बनून मन रमवणारी.
गुरु बनून नीतीचे धडे गिरवणारी.
सच्चा दोस्त म्हणून निभावून नेणारी,
रक्ताची नाती तुटली तरी साथ न सोडणारी
मैत्री असावी तर त्या दोन वाघांसारखी
मृत्यू समोर असतांनाही साथ सुटू न देणारी..
अमर अविनाशी शंभु नी कलशांसारखी मैत्री अतुट असावी..
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४० दिन में एक ऐसा दिन नहीं, जिस दिन वो हारे नहीं।
और एक ऐसा दिन नहीं, जिस दिन ये संभा जीता नहीं॥
४० दिन में एक ऐसा दिन नहीं, जिस दिन वो औरंग मरा नहीं।
और एक ऐसा दिन नहीं, जिस दिन ये संभा जिया नहीं॥
४० वे दिन मृत्यु को मार कर, ख़ुद "मृत्युंजय" हो गया।
ऐसा मृत्यु को पराजय करने वाला, विश्व में दूजा संभा नहीं॥-
हर ओर ख़ुशहाली सुखुन है छायै, ऎसा श्री शिव स्वराज साजै।
आजकेहू दिन लिये वहीं मंत्र शिवा से, श्री शंभु सुवर्णसिंहासन विराजै॥-
जीते जी ये कर्म ना छोडू, शास्त्र सनातन मर्म ना छोडू..
मातृभूमि के लिये मर जाऊँ,शीश कटाऊँ पर धर्म ना छोडू..-