अकसर इस उधेड़बुन मे रहता हूँ कि
प्रेम का अर्थ कुछ होता है इस जहाँ में.. ??
हर बार बस एक ही निष्कर्ष निकलता है..
प्रेम बस प्रेम है और कुछ नहीं..
क्यूँकि भावनायें सिर्फ महसूस की जाती है..
बताई नहीं जाती...
-
व्यवहार से वैश्य,कर्म से क्षत्रिय
खम्मा घणी सा...🙏
अ... read more
आशिकी का ये सबब की सांसे महकती है इस मिट्टी से...
घर बूढी आँखें सहम जाती है मेरे नाम की एक चिट्ठी से...
(एक फौजी)-
बुनियाद गुजारिश करें शाखों से रहनुमाई की...
निकम्मी नस्लों से अजदाद का कुछ हश्र यूँ होता है...-
कलम कागजों से और कहे भी तो क्या...
राहें भी वही है हमसफर भी वही....-
खिजां का कोई कसूर नहीं,दिल-ए-गम कहें बहारों से क्या....?
मुतमईन है रात उधार की रौशनी से तो 'साहिब' हम कहे सितारों से क्या...?
उसूलों का वास्ता देकर जिन्हें रोक लेते थे बेशर्मी से...
आज तलबगार ही नहीं वो समझाइश के तो आँखें नम कहें इशारों से क्या...?-
अंगारे सुलग रहे राख में दबे.. दिल जल रहा बारिश में...
जीने को 'साहिब' चंद पल मिले वो भी बीत गये गुजारिश में...-
वो कह रहे मोहब्बत करनी है लेकिन दायरा उसका हद में हो...
अब तुफां से क्या कहे 'साहिब' कि तुम बारिश की जद में हो...-
हजार गुल इस चिलमन में,भँवरों को दरीचे अता होंगे...
जिसे इंंसान कहते हो तुम उसे मोहब्बत के उसूल पता होंगे...-
दिल मचलता है दिन ढलता है वक्त ठहरता नहीं...
फिर क्यूं उस महताब के इंतजार में ये आग जलाते हो...
वो समझना नहीं चाहता गर दिल-ए-साहिब को...
फिर क्यूँ इस हुजरें में उसके नाम का चराग जलाते हो...-
गम आँसू दरियादिली... आफत का पिंजरा छोटा सा...
खाना,खुराकी और भूख गहरी,आँखों पे पहरा छोटा सा...-