चित्त माझे, माझे मन।
मुखासी बोले, बोले जय गजानन।।
क्षण प्रत्येक हा जीवनातला।
अर्पण तो श्री गजाननाला।।
बनली सृष्टी कणाकणातून।
त्यातील मी एक क्षुल्लक कण।।
आहे प्रत्येक कणाकणात।
आमुचे हे.. श्री गजानन।।
भक्त आम्ही श्री गजाननाचे।
आणि गुरुवार असे अमुचा सन।।
कामे असूद्या कितीही कठीण।
संपूर्ण होतील बोलूनी श्री गजानन।।-
मत पूछो कैसे इश्क में दिल लगा बैठा हूँ,
किसी के लिए दिल की समाधि लगा बैठा हूँ ।।-
नैनां अंतर आव तू, नैना झंप तोहे लूं।
ना में देखूं और को, ना तोहे देखन दूं।-
स्थिरता जीवन को रंगहीन बना देती है,और रंगहीन जीवन से सुख की कामनाएं निरर्थक हैं।।
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कुछ रिश्ते समय के साथ विश्वास और प्यार के अभाव मे और कभी कभी छल मे आकर मैले हो जाते है ..कभी इतनी मोटी गहरी परत जम जाती है की दिखायी और सुनायी देना बंद हो जाता है ..ऐसे रिश्तो को खामोशी की चादर ओढ़ा कर उनको जल समाधि दे देना ही श्रेयस्कर होता है ..
Ar@dhya-
Sometimes you reach at a stage of consciousness when you can even hear the answers from silence.
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दूर बहुत दूर चले जाना है,
यादें वादें फरियादों का दायरा
जहाँ खत्म हुआ, वहां से भी
आगे निकल जाना है,
मन जहां आत्मा मे विलीन होने
लगे उस क्षितिज मे
समाधि लगाना है ।।-
जग की पुरानी रीत है
जहां लाभ वहीं जाय।
जो जाने सत्त-ब्रह्म को
जग से विरला हो जाय।।-
Being on the earth physicaly
is not
being in the world necessarily.
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Turning inside away from your physical body and world is resting in your self in the presence of the divine light (Samadhi), is being the soul purely. This is called as self realisation. It is not the Enlightenment i.e. being the divine light.
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