खुद में खुद को दफ़न करता है
जब कोई अपना घर छोड़ता है __
हवाये भी नाराज हो जाती हैं अक्सर
जब कोई परिंदा शहर छोड़ता है__
कई मंजिले भी मायूस हो जाती हैं
जब कोई मुसाफिर सफर छोड़ता है__
मेरी अहमियत कुछ खास नही है मुझमे
पर मेरा किरदार दिलो पे असर छोड़ता है__-
इज़हार तो कर रहे हो तुम मोहब्बत का
पर इसका अंजाम भी समझते हो न
इतना आसान ना होगा ये सफ़र तय करना
संग मेरे इन रुकावटों को पार तो कर पाओगे न-
Mere hatho Mai Tera hath ho,
Zindagi ke safar Mai Tera saath ho,
Teri Meri kuch pyari pyari baat ho,
Bs unhe Puri Zindagi tu mere saath ho.
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विरासत में नहीं मिला है मुझे ये हुनर लिखने का,
लोगो ने तारीफें कर कर के ही शायर बना दिया।-
..............मुसाफ़िर हूँ मैं...........
मुसाफ़िर हूँ मैं,
थकना लाज़मी है |
पल दो पल रुक कर
फिर बढ़ना लाज़मी है |
मैं कायर नहीं
जो हार मान लूँ,
मेरा हार कर भी जीतना,
ऐ ख़ुदा! लाज़मी है |
हँस कर मिलूं फिर,
ये मैं क्या कहूं!
सफ़र में हूँ मैं,
गुम होना लाज़मी है |
मुसाफ़िर हूँ मैं,
अब ठहरना नहीं है,
हर कदम आगे बढ़ना,
ऐ ख़ुदा! लाज़मी है |-
ख़्वाबों के शहर में
सपनों को टूटते देखा है मैंने।
नसीब के चोट से
हुनर को मात खाते देखा है मैंने।
जबतक लकीरें साथ दे रहीं है
काबिल कहलाओगे तुम यहाँ।
वरना उम्र ढलने के साथ
हाथों से लकीरों को मिटाते देखा है मैंने।-
सुर्ख़ियों में हैं हमारी कामयाबी के चर्चें जनाब,
कोई हमसे पूछे सफर कितना तकलीफ-देह रहा ।-
मेरे सब्र की घड़ी में इन्तेहान बहुत हुआ,
तेरे नाम से ये दिल परेशान बहुत हुआ।
तकदीर को दोष दूँ या अपनी जिम्मेवारियों का बोझ लूं,
ये मेरी लापरवाही है जो,आसान सफ़र में भी
जद्दोजहद बहुत हुआ।-
सफ़र का हसीन होना ज़रूरी है,
केवल दीवानगी काफी तो नही
मंज़िल खुशनुमा बनाने के लिए!-