❣️घर का सारा काम निबटा के, फिर ऑफिस जाती हु,
शाम को घर लौटकर, फिर काम में लग जाती हु,
मां जी, फिर भी क्यों आपकी बेटी न मैं बन पाती हु?
जींस नही पसंद आपको,तो सूट साड़ी पहन,खुद को सजाती हु,
मां जी, फिर भी क्यों आपकी बेटी न मै बन पाती हु?
पैर सुबह जब छूती हु, कब आपका मन मैं छू पाऊंगी,
कभी तो बेटी वाला स्नेह आपसे पाऊंगी,
बस ये सोच रह जाती हु,
मां जी, फिर भी क्यों आपकी बेटी न मैं बन पाती हु?
आपके कहने पर व्रत सब मैं रखती हु,
पूजा पाठ सब धर्म आपके हिसाब से करती हु,
मां जी, फिर भी क्यों आपकी बेटी न मैं बन पाती हु?
कहो जो आप मायके नही जाना,
नही होता अब काम मुझसे तेरे जाने पर,
तो मन कचोट के बस अपना चुप हो जाती हु,
मां जी, फिर भी क्यों आपकी बेटी न मै बन पाती हु?
मायके से तो बस लिया हमेशा मैने,
ससुराल में हर महीने का हिसाब आपको बतलाती हु,
हो फिजूल खर्ची कभी जो, तो डांट भी खाती हु,
मां जी, फिर भी क्यों आपकी बेटी न मैं बन पाती हु?
सबसे मिलजुलकर हस बोलकर, मेहमानों में घुल मिल जाती हु,
हर महीने, तनख्वा तक अपनी, आपके हाथों में थमाती हू,
मां जी, फिर भी क्यों आपकी बेटी न मैं बन पाती हूं?❣️
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