जित पारीक तरनाऊ   (दिल की क़लम से)
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Joined 21 April 2019


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लोग रूठ जाते हैं मुझसे और मुझे मनाना नहीं आता ,
मैं चाहता हूँ क्या मुझे जताना नहीं आता।
आंसुओं को पीना पुरानी आदत है, मुझे आंसू बहाना नहीं आता,
लोग कहते हैं मेरा दिल है पत्थर का ,इसको पिघलाना नहीं आता,
अब क्या कहूं मैं क्या आता हैं, क्या नहीं आता ,
बस मुझे मौसम की तरह बदलना नहीं आता..!

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वो इस कदर मुस्कुराये की हम होश खो बेठे ॥
हम होश में आने ही वाले थे की फिर वो मुस्करा उठे ॥

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तेरे बिखरे सवालों का सुलझा हुआ जवाब मैं हूँ ,
है गर किताब तू, उसमे लिखा हर अल्फाज मैं हूँ ,
हो तुम मोहब्बत की मूरत, तो वफ़ा का नाम मैं हूँ,
है बेमिसाल तू तो मान लेना लाजवाब मैं हूँ,
उलफ़त की कहानी कहीं चले तो बताना जरूर ,
उसमे लिखे हर अध्याय का किरदार मैं हूँ ।।

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महज़ एक पनाह की दरकार है मुझे ,
ग़र तुम मिल गये मानो बेसरा मिल गया ॥

only words

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हकीकत हो या ख़्वाब उनकी यादें मुकम्मल हो जाएं,
निकले ज़हन से जो हम भी रूहानी पत्थर हो जाएं।।
लिखते रहे तुझपर बस तुझे लकीरों में न लिख पाये,
तुम पढ़ो एक दफा इन्हें कि लफ्ज़ मेरे मुकम्मल हो जाएं।।
जन्म दिवस की हार्दिक बधाई मित्र ॥

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लिखना हमारी रोज़मर्रा में शामिल है ,
पन्नो की गिनती हम कतई नहीं करते ,
शिकायते हम कम ही करते है अब ,
ऐहसास मेरे या ना मरे, हम ज़िन्दादिल रहते है ॥

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॥ सुनो जी पत्नी जी ॥

पहली बार देखा तो झुमकों में कुछ यूँ अटक गये ,
बन कर प्यार का परिंदा हवा मैं लटक गये ,
अकेले अकेले चल रही थी ज़िन्दगी की गाड़ी ,
फिर आप हमसफ़र बने और हम अटक गये ॥

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जिन्हें फ़िकर थी कल की वो रोये रात भर ,
जिन्हें भरोसा था भगवान पर वो सोये रात भर ॥

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भूलना मेरी आदत में शुमार नहीं ,
याद्दाश्त चली जाये तो अलग बात है,
याद तेरी हर साँस के साथ आती है ,
साँसे ही चली जाए तो अलग बात है ,
अपनों को याद रखना मेरी फितरत है ,
अपने ही अजनबी हो जाए तो अलग बात है ।।

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नज़्म लिखे या एहसास लिखे सोचते है ,
आज तुम्हारे लिये कुछ ख़ास लिखे ,
मिले नहीं है ज़िंदगी में कभी भी हम ,
चलो ना आज मिलने की फ़रियाद लिखे ,
ख्वाहिशें कब उतरी इन आँखो से पता नहीं ,
तुम्हें अपनी आँखो के ख़्वाबों का सरताज लिखे ,
चलो आज तुम्हें कुछ ख़ास लिखे ॥

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