अदावत कितनी हावी हो चुकी है,
ये दुनिया ख़ूं की प्यासी हो चुकी है।
उछलता है यहाँ तेज़ाब, ना पर,
मुहब्बत कितनी अंधी हो चुकी है।
लगे जब ठीक, हमको छोड़ देना,
हमारी जेब ख़ाली हो चुकी है।
लगाया इस तरह मरहम उन्होंने,
हमारी चोट गहरी हो चुकी है।
हमें कुछ और दिन की दी है मोहलत,
हमारी मौत राज़ी हो चुकी है।
नज़र आते हैं हम-तुम साथ, लेकिन,
हमारे बीच खाई हो चुकी है।
तुम्हारा जिस्म तो पूरा ढका है,
तुम्हारी रूह नंगी हो चुकी है।
मिलाते हो हमारी हाँ में हाँ पर,
तुम्हारी सोच बाग़ी हो चुकी है।
पढ़ा रूमी को उसने यार ऐसे,
वो पगली आप रूमी हो चुकी है।
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