मेरी शख्सियत
दुश्मन सारा ज़माना, हर बात पे नुक्स निकाला करती है |
पहले पीछे से वार करती थी, अब पास आकर वार करती है |
खिल्लियां उड़ाके मेरी, सुकून मिलता उनको |
एक पल भी ना सुहाती, मेरी खुशी जिनको |
हंसी चेहरे के पीछे, खंजर छिपाए रखा है |
भीतर से है ज़हरीले, मुख में मिठास रखा है |
मैं जानती हूँ सब कुछ, फिर भी ना कुछ मैं कहती |
क्या कहूँ मैं इनको, बस अपने ही धुन में रहती |
असलियत जानकर अनजान सी हूँ मैं |
सब कुछ कह दूँ, ऐसी इन्सान नहीं हूँ |
खामोश रहो बस अब कुछ ना कहो ज़माने में |
वक्त ना लगेगा, मुझे आइना दिखाने में |
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