अकेला मुझे होना पड़ा
मुश्किलों का शोर था, लोगों के तानों का भी ज़ोर था।
मंज़िल थी भीड़ में मुमकिन नहीं, बुरा माहौल चारो और था।
मैं अकेला ही यूँ निकल पड़ा, अपने ख्वाहिशों पे चल पड़ा।
मैं अकेला नहीं था उस दौर में, अकेला मुझे होना पड़ा।
सोचा औरों में ख़ुद को घोल लूँ, उनकी सोच से भी तौल लूँ।
दिया वक्त सारा औरों को, सोचा उनके लिए अनमोल हूँ।
कोई संग ना आया मेरे जो, सारा विश्वास है बिखर पड़ा।
मैं अकेला नहीं था उस दौर में, अकेला मुझे होना पड़ा।
ख़ुद को मैं बिखेरकर, औरों को पाने था चला।
जितना औरों से मिलता चला, उतना ख़ुद को मैं खोता चला।
जब समझ ये बात आई गौर से, मैं अपनी परवाह में निकल पडा़।
मैं अकेला नहीं था उस दौर में, अकेला मुझे होना पड़ा।
परवाह औरों की छोड़कर, थोड़ा ख़ुद की भी परवाह कर।
चिंताएं सारी छोड़कर, अब फिर से तू प्रयास कर ।
इस ज्ञान को आत्मसात कर, मेरा भविष्य है निखर पड़ा।
मैं अकेला नहीं था उस दौर में, अकेला मुझे होना पड़ा।
-Vineeta Ekka
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