Vineeta Ekka   (Win For Self)
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सीधे साफ शब्दों में दिल की बात लिखी है।
जो समझा, समझो उसकी फरियाद लिखी है।
Joined 4 August 2020


सीधे साफ शब्दों में दिल की बात लिखी है।
जो समझा, समझो उसकी फरियाद लिखी है।
Joined 4 August 2020
7 APR AT 19:35

तुम ख़ास थे....

दूरियाँ मजबूरियाँ नहीं है बातों की,
अहसास रुकनी नहीं चाहिए जज़्बातों की।

करीब हूँ मैं तुमसे बस इन्हीं बातों से,
दूर होने नहीं दिया तुमने कभी इन जज़्बातों से।

चाहे कितना भी दूर क्यों ना रहूं मैं तुमसे,
अहसास होता है , जैसे की करीब हूँ मैं ख़ुद से।

फासला कभी कम नहीं किया तुमने मुझसे बातों का।
समझा मेरी रूह को, कदर किया जज़्बातों का।

कोई अहसास ना था दूरियों का, तुम दूर होकर भी पास थे।
शायद यही वजह थी हमारे रिश्ते की, कि हमेशा तुम मेरे ख़ास थे।

कदर किया है तुमने अक्सर, मेरे अनकहे जज़्बातों का।
ख़याल तुम्हारा ही आता है दिल से, जब भी ज़िक्र आता है इन बातों का।

ख़ुद को पाया है तुमसे, तुम वजह हो मेरी पहचान का।
जीना तुम्हीं से सीखा है, तुम ताकत थे मेरे ईमान का।

Vineeta Ekka

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24 MAR AT 13:30

रास्ता नेकी का.....

चलो माना कि उस ख़ुदा ने तुम्हें, खूब दौलत और शोहरत से नवाज़ा होगा।
कदर कर उस ख़ुदा की जिसने तुझे अब तक संभाला होगा।

जो लिखा है तकदीर में, उसका इतना भी ग़ुरूर मत कर।
पकड़ ले राह नेकी का, उस ख़ुदा से ख़ुद को दूर मत कर।

मेहनत वो हुनर है, जो फ़कीर को भी रईस बना देता है।
ज़ुबां पे लफ़्ज़ हो प्यार के, तो वो ख़ुदा भी राह सजा देता है।

भूल ना जाना इन्सानियत अपनी, चंद पैसों के गु़रूर में,
बनाया तो ख़ुदा ने भी था तुझे ,अपने नेकी के उसूल में।

इतना ग़ुरूर किस बात का, कि किरदार अपनी भूल जाया करते हो।
भुलाकर मेहरबानी उस ख़ुदा की, बेईमानी पे तूल जाया करते हो।

थाम ले हाथ उस ख़ुदा का, इरादे अपने मज़बूत कर लें।
वास्ता नेकी से रख, ख़ुद को बुराईयों से दूर कर लें।

-विनीता एक्का

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16 DEC 2023 AT 20:32

कुछ बातें अनकही सी...

वजह कहाँ थी तुम्हें प्यार करने की,
हम तो यूँ ही दिल हार बैठे।
कभी ढूंढी ही नहीं वजह,कि क्यों,
क्या,कैसे बस यूँ ही दिल लगा बैठे।

दिखता था आँखों में प्यार ढ़ेर सारा,
इसे नाम देने की वजह कहाँ थी।
बातें हज़ार नहीं हुआ करती थी हमारी,
लेकिन वो तोहफे भी बेवजह कहाँ थी।

इस प्यार में ना ही दगा थी ना ही वफ़ा का सवाल था,
पर कुछ अनकही बातें तो ज़रूर थी।
उनके ख़यालों में खोकर ये ख़याल आया,
उन ख़यालों से बढ़कर, पर कुछ तो ज़रूर थी।

बातें भले ही कम थी हमारी,
मगर आंखों में आँखों का इशारा ही काफ़ी था।
मुमकिन हो ना हो मिलना मुकद्दर में ,
पर जीने को यादों का सहारा ही काफ़ी था।

एक अजीब सा प्यार था हमारे बीच,
ना मैंने कुछ कहा, ना उसने कुछ सुना।
दबाकर के उन अनकहे जज़्बातों को भीतर ही,
मैंने इन जज़्बातों को बुना।

- Vineeta Ekka

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9 DEC 2023 AT 17:37

उलझन

आास पास रखने का दिल है उस ख़ास को,
समझ नहीं आता समझ जाऊँ
या फिर समझदारी दिखाऊँ।

फिर भी, नज़र के सामने है वो,
समझ में नहीं आता कि नज़रें चुराऊँ
या फिर ठहर जाऊँ।

चाहत थी कि इतनी सी ख्वाब थी मेरी,
जो चाहती थी कि मैं पूरी कर जाऊं।

ख़बर कहॉं थी उस शख़्स को मेरी,
कि उसकी यादों में बिखर जाऊँ या फिर संवर जाऊँ।

समझती थी जिस शख़्स को उजाले की तरह,
किसी दौर में अपनी जिंदगी का,

समझ नहीं आता अब उसे ग़ैर समझूं
या फिर उसकी गै़र बन जाऊँ।

-Vineeta Ekka

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17 SEP 2023 AT 15:21

निकलना हो अगर मुश्किलों से बाहर, तो ख़ुद का एक मुकाम बना लेना।
अगर हिम्मत हो थोड़ी भी बाज़ुओं में, तो अपनी पहचान बना लेना।

-Vineeta Ekka

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6 SEP 2023 AT 15:05


ख़ुद का ख़याल

वक़्त बेवक्त, ख़ुद का ख़याल क्यों ना कर लूँ।
क्यों किसी के ख़याल, में हर लम्हा ज़ाया कर लूँ।

हर दफ़ा किसी के साथ होने में क्या रखा है।
चंद उम्मीदों की ख़ातिर, किसी से वास्ता बना रखा है।
क्यों ना फुर्सत से, एक बार मैं, ख़ुद से मुलाकात कर लूँ।
क्यों किसी के ख़याल, में हर लम्हा ज़ाया कर लूँ।

दुनिया की भीड़ से अलग, खुद में कुछ तो मैं भी हूँ।
इतना जानती हूँ कि, औरों से ख़ास कुछ तो मैं भी हूँ।
थोड़ी देर ही सही मैं, क्यों ना ख़ुद से मुलाक़ात कर लूँ।
क्यों किसी के ख़याल, में हर लम्हा ज़ाया कर लूँ।

ये वो साथ है जो ख़ुद को ख़ुद से भी जुदा नहीं करता।
ये वो कर्ज है जो ख़ुद ही ख़ुद से कोई अदा नहीं करता।
क्यों ना ख़ुद के साथ बैठ मैं, चंद लम्हों को जी लूँ।
क्यों किसी के ख़याल, में हर लम्हा ज़ाया कर लूँ।

-Vineeta Ekka

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3 FEB 2023 AT 22:26

हौसला अभी भी बुलंद मेरे है मन का, मैं आज भी थकी नहीं हूँ।
जान कितनी भी लगा दूँ अपनी मंज़िल पे, मैं अब भी रुकी नहीं हूँ।

-Vineeta Ekka

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15 OCT 2022 AT 12:57

वक़्त ने कुछ इस कदर मुझे समझदार बना दिया।
दर्द ने कुछ ऐसा असर किया, मुझे असरदार बना दिया।

-Vineeta Ekka

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13 AUG 2022 AT 21:48

अकेला मुझे होना पड़ा

मुश्किलों का शोर था, लोगों के तानों का भी ज़ोर था।
मंज़िल थी भीड़ में मुमकिन नहीं, बुरा माहौल चारो और था।
मैं अकेला ही यूँ निकल पड़ा, अपने ख्वाहिशों पे चल पड़ा।
मैं अकेला नहीं था उस दौर में, अकेला मुझे होना पड़ा।

सोचा औरों में ख़ुद को घोल लूँ, उनकी सोच से भी तौल लूँ।
दिया वक्त सारा औरों को, सोचा उनके लिए अनमोल हूँ।
कोई संग ना आया मेरे जो, सारा विश्वास है बिखर पड़ा।
मैं अकेला नहीं था उस दौर में, अकेला मुझे होना पड़ा।

ख़ुद को मैं बिखेरकर, औरों को पाने था चला।
जितना औरों से मिलता चला, उतना ख़ुद को मैं खोता चला।
जब समझ ये बात आई गौर से, मैं अपनी परवाह में निकल पडा़।
मैं अकेला नहीं था उस दौर में, अकेला मुझे होना पड़ा।

परवाह औरों की छोड़कर, थोड़ा ख़ुद की भी परवाह कर।
चिंताएं सारी छोड़कर, अब फिर से तू प्रयास कर ।
इस ज्ञान को आत्मसात कर, मेरा भविष्य है निखर पड़ा।
मैं अकेला नहीं था उस दौर में, अकेला मुझे होना पड़ा।

-Vineeta Ekka

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23 JUN 2022 AT 9:42

अक्सर ख़ामोश रहा करती हूँ, इसका मतलब ये नहीं कि मुझे बोलना नहीं आता।
कुछ राज़ तुम्हारे भी दफन हैं इस ख़ामोशी में, ख़ामख़ाँ गिनाकर कमियाँ, ख़ुद के उसूल तोड़ना नहीं आता।

-Vineeta Ekka

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