दिनेश की सात रश्मिया है, आदित्य की सात किरणें: बैंगनी, जामुनी, नीली, हरी, पीली, नारंगी और है लाल, भानु के गिर्द पृथ्वी के चक्कर लगाने से बनते हैं साल।
इन सात रंगों को तीन भागों में बांटा है: गहरा, मध्यम,हल्का
इस प्रकार 7×3 करने पर 21 किरणें बनती हैं, यही किरणें सारे विश्व को रोशन करती हैं..
Prism में देखने पर जो सात रंग नजर आते हैं वहीं सात रंग इंद्रधनुष बनाते हैं...
समृद्धि को भाते हैं यह सारे रंग,
प्रभाकर की कृपा सदैव रहे आपके संग।-
न जाने कितने सच और झूठ देखे, फिर भी उसी सच्चाई के साथ उगता हूँ ,
मेरा तपना जलना कोई ना देखे, रोशनी सबको देता हूँ।-
सौर ऊर्जा का भंडार है दिवाकर,
ऋतुओं को प्रकट करने वाले प्रकाश है प्रभाकर।
रात्रि का अंधकार दूर कर, प्रकाश को फैलाए रवि, रविवार को हाथ जोड़ नमस्कार करें सभी।
भय, रोग का करे नाश, सूर्य नमस्कार आसन यदि प्रत्येक व्यक्ति करे नियम बनाकर,
तो बीमारी से रक्षा करेंगे सदा दिवाकर।
समृद्धि का यही है कहना, रविवार के दिन सूर्य देव जी को जल अर्पण करते रहना।-
सुना है मैने आज रविवार का दिन है
आज स्कूल बंद होने का दिन है
अच्छा जी आज आराम का दिन है
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मनाचा सरकार ,विश्रांति ची दुपार
सोडून सगळा कारभार ,निवांत घटका दोन चार
आठवड्याचा मध्यावर आठवतो फार फार
असा हा रविवार
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मिलो फुर्सत मे किसी इतवार को,
मैं उतना भी बोरियत नहीं......
जैसे मिलता सोमवार से शनिवार को।-
कभी कभी,
सोमवार को भी,
रविवार सा एहसास होता है,
सोमवार की छुट्टी हो तो,
ऐसा महसूस होता है...........-
न तुम आए न तुम्हारी यादें,
रो - रो कर बिता दी हमने तन्हा, खाली रातें,
चेहरे पर झूठी हँसी लेकर हर रोज निकलती हूँ,
दुनिया समझ न पाए मेरे अंदर की गमी,
इसलिए आज कल खूब हँसती हूँ
लगा आज तो निभाओगे तुम अपना किया वादा मगर,
आज फिर मेरी कविता का सार अधूरा रह गया
आज फिर मेरा रविवार यूँही बीत गया...-
Bhot fark h mere har roz ke mizzaz me..
Nahi mil pata hu vasa jsa hota hu khudhi ke khumar me..
Kam se dillagi krta hu... nhi bitata hu waqt bekar me..
Tum mujh se milna kbhi ravivar me..-
गेंती,
बेलचा,
सब्बल,
तसला,
के इतर,
हमारा कोई यार नहीं होता
मजदूर है हम,
साहब।
हमारे घर कलेन्डर नहीं होता।
हमारा कोई रविवार नहीं होता-