सड़कों के किनारे
पलते हैं कुछ सपने
या पलती है हैवानियत
सपने फुटपाथ की जर्जरता से
महलों के ऐशो आराम कमाने की
हैवानियत उन सड़को पर चलती
स्त्रियों की अस्मिता
और मांस नोच लेने की
मैं चलती हूँ जब भी सड़कों पर
देखती हूँ किनारे पलते
दोहरे दृश्य को
बँटे नहीं हैं पाटियों में
ना उनके रंग रूप अलग हैं
हाँ, बस उन सपनों की सुगंध और
हैवानियत की दुर्गंध दूर से आती है
सड़कों और स्टेशन के किनारे
दिखाई देते हैं दोहरे दृश्य
जो कभी चित्त को डराते हैं
तो कभी
आंखों को हँसाते हैं-
Jis ravn ne sita maa ko hath tk nhi lgaya aj sb log usko milkr jlate h..
Hr roj jo rape hota h ldkiyo ka,,tb log unko szaa dene ki bjay vkt ko hi klyug btate h-
देखा जाए क्या यह सही है?
बलात्कारी बलात्कार करके
उस लड़की को ही मार डालते है बरना क्या...
ये समाज उसे जीने देता?-
ले गया जिस्म, लग गया दाग,
तोड़ गया चूड़ियां, मर गया हर नारी का ख्वाब !-
वो बढ़ता चला था मेरी ओर
मैं कितनी चिल्लायी थी
मैं कितनी गुस्साई थी
पर उस हैवान पर कुछ असर ना पड़ा
उसकी हवस ने
मुझे बरबाद,
उसे आबाद कर दिया
जिस्म तो क्या मेरी रूह को भी छलनी कर दिया
मेरी पूरी जिंदगी को एक लम्हे में
हवस का शिकार पूरा
बरबाद कर गया
मुझे जीते जी वो मौत के हवाले कर गया...-
हर तरफ बस लाल लहू है।
मुझे मार, अब दूर तू क्यूं है।
पहल करी जब प्यार दिखाया,
दूजी पहर पास तू आया,
अगली पहर शरीर लगाया,
अपने तन से नोच कर खाया।
भूख मिटी जो तेरी आखिर,
मुझे भूल किसी और को करने चला हासिल ।-
उलझी थी जिस हश्र में दुनियां लौटी तो बिखरा मिला घर,
फैला मिला था हर चीज़ तो अब क्यों है ज़ेर-ओ-ज़बर।
ज़माने के बारे में तुमको भी है सब पता सारी है ख़बर,
यही सोच कर बैठी थी कि दुनियां समझेगी मेरी रहगुज़र।
सुनाने में तो ज़माना लगेगा पर क्या मिलेगा मेरा गुनहगार,
सुनने में आया है की मेरे बोलने से सब हो गया मुख़्तसर।
कलियाँ बिखर गई ये सोचकर की क्या है उनका कसूर,
शर्मसार हो उठे दे कर अदब ऐ हवस है तुझे बार-ए-दिगर।
मैं शब्दों को लाई हूं खोज कर ले कर ले तेरा व्यापार,
फिर से कितना गिरेगा आज तू बस रहेगा ख़याल-ए-यार।-
गुलिस्तान में बसा हर नशेमन कफ़स बन जाए,
हर मादा में जब सिर्फ माँस का लोथड़ा नज़र आए।-