बला से हमको लटकाए अगर सरकार फाँसी से
लटकते आए अक्सर पैकरे-ईसार फाँसी से!
लबे-दम भी न खोली ज़ालिमों ने हथकड़ी मेरी
तमन्ना थी कि करता मैं लिपटकर प्यार फाँसी से !
खुली है मुझको लेने के लिए आग़ोशे आज़ादी
खुशी है, हो गया महबूब का दीदार फाँसी से!
कभी ओ बेखबर तहरीके-आज़ादी भी रुकती है?
बढ़ा करती है उसकी तेज़ी-ए-रफ़्तार फांसी से !
यहाँ तक सरफ़रोशाने-वतन बढ़ जाएंगे क़ातिल
कि लटकाने पड़ेंगे नित मुझे दो-चार फाँसी!
भारत माँ के वीर सपूत "राम प्रसाद बिस्मिल" जिसने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाकर रख दिया था, उनके जयंती पर उनको शत् शत् नमन !🙏🇮🇳🙏-
आसान है सभी का कायर या बुज़दिल होना
बड़ा मुश्किल होता है किसी का 'बिस्मिल' होना|
इश्क में तो सभी हद से गुजर जाया करते हैं
मुश्किल होता है वतन के वास्ते कातिल होना||
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पं० राम प्रसाद 'बिस्मिल' जी को जन्म जयंती पर शत शत नमन🙏🙏
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लेखक नही हूं मैं,
अपने कलम से क्रांति ला रहा हूं,
माचिस की तिल्ली बनकर,
मैं खुद देश के दिए जला रहा हूं ।।-
हे मातृभूमि! तेरे चरणों में सिर नवाऊँ ।
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।
माथे पे तू हो चन्दन, छाती पे तू हो माला।
जिह्वा पे गीत तू हो, तेरा ही नाम गाऊँ ।।
जिससे सपूत उपजे, श्रीराम-कृष्ण जैसे।
उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।
माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर।
करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।
सेवा में मेरी माता मैं भेदभाव तजकर।
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूं सुनाऊँ ।।
तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ।
मन और देह तुझ पर बलिदान मैं चढ़ाऊँ ।।
।। रामप्रसाद बिस्मिल।।-
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है?
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आस्माँ! हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में हैं।
-पं० राम प्रसाद ‘बिस्मील'
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खौफ से जिनके गोरे भी छिपे हुए रहते थे बिल में
जैसे शार्क के डर से छिपे हो जाकर गहरी झील में
चल रही लौह पथ गामिनी लूटकर काकोरी में तुमने
दिखा दिए साहस है कितना रामप्रसाद बिस्मिल में
🙏 पं. रामप्रसाद बिस्मिल🙏-
देश के खातिर वो हंसते हुए फांसी पे झूल गए...
उस वीर सपूत जाबाज़ को हम कैसे भूल गए...
#RamPrasadBismil-
राम प्रसाद बिस्मिल जी के जन्मदिवस पर मेरी तरफ से श्रद्धांजलि
११.०६.१८९७ - १९.१२.१९२७
दूंगा लहू भाइयों को और दुश्मनों का बहा दूंगा
देश की ख़ातिर देश पर मैं अपना सब कुछ लुटा दूंगा
फिर भी कोई पूछेगा गर मेरी वतनपरस्ती की सीमा मुझसे
तो मैं खुशी से अपना मस्तक भारत माँ के चरणों में चढ़ा दूंगा।-
तेरे हर फ़क्र पर मुझको शर्मिंदगी महसूस होती है
तू क़ौम का क़ामिल है, मैं वतन का बिस्मिल हूँ।-