विशाल सिंह भारद्वाज   (💓विशाल "विमर्श"🖊)
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Joined 28 April 2020


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Joined 28 April 2020

धड़कता ही नहीं है
कोशिशें की बहकाने की
बहकता भी नहीं है

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बरसों से मैंने रखी हैं कितनी
तुम कभी मिलने क्यों नहीं आते वक्त निकालकर

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ये सजना संवरना किस लिए
जो आंखों में नहीं तो दिल में उतरना किस लिए
जो तुझे चाहता है उसकी तो तुझे कद्र ही नहीं है
जो चाहता नहीं तुझे फिर उसपे मरना किस लिए

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समझ जाता तो अच्छा था ,
तमाम गलत रास्तों से बच जाता तो अच्छा था
खामियों का तो यूं खड़ा कर दिया है पहाड़ मैंने,
नेकियों में भी इतिहास रच जाता तो अच्छा था

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मैं तेरे शहर आ गया
ठोकरें खाई तब सोचा मैं ये किधर आ गया

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फिर निराशा के फल आए
किसने नज़र लगा दी हम सबकी खुशहाली पर!

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कभी अपनों की तरह
या यूं ही लुभाती रहेगी
सिर्फ़ सपनों की तरह

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सिमटी हुई है मेरी ज़िंदगी
काश! मैं समेट लूं पन्ने, संवर जाए जिंदगी

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क़दम क़दम पर दिन होगा
जीवन है संघर्षों की कहानी
सुख दुख तो पल छिन होगा

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मेरा कुछ रहा ही नहीं
तिनका तिनका टूटा पर कुछ कहा ही नहीं
निभाए हर रिश्ते तमाम दर्द से गुजर के भी
पर तुम कहते हो मैंने तो कुछ सहा ही नहीं

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