बूंद भर प्रेम जिया
और
अथाह विरह चुना
कृष्णा संग पूजिता ने.....।।-
कृष्णा मोरे कृष्णा मन भावे तेरा नाम प्यारा
जपती रहूॅं हरपल मैं ओ मुरली तेरा ही नारा
किसना ओ तेरे पर राधाराणी को भी मान हैं
ओ बनसीवाले तुझपर ही मीरा को गुमान हैं
राधा नदी के जैसी सुंदर,सुशील व निर्मल हैं
संगम होते उनका, कन्हैया प्रेम का सागर हैं
प्रेम का शायद राधा को मिला यह इनाम हैं
कान्हा से पहले सब लेते राधा तोरा नाम है
ओ जपूॅं मैं वह राधाकृष्ण बोल हर बार बार
गुंजे आवाज मोरी यमुना तट के ही उस पार
झूटे शायद अपने भी झूटा यह पुरा संसार हैं
सच्चा लगता मुझको वह कान्हा का दरबार हैं-
मुझमें सबरी जैसा धेर्य नहीं...
जो मै आपकी प्रतिक्षा कर सकूं....
मुझमें केवट जैसी चतुराई नहीं...
जो मैं आपके चरणों की सेवा कर सकूं...
मुझमें गजेन्द्र जैसी बुद्धि भी नहीं...
जो सदा आपकी स्तुति कर सकूं...
मुझमें विदुर जैसी सरलता नहीं,
जो में आप से अनासक्त रह सकूं...
मुझमें सुदामा जैसा समर्पण नहीं...
जो सदा आप के गुणगान किया करु...
मै दीन हीन कलयुग के दोषों से भरा हुआ हूं...
मुझे आप के चरणों में जगह दे दो..
जय श्रीराधेकृष्ण...❤❤-
गोकुल में है जिनका वास,
गोपियों संग रचाए जो रास
देवकी यसोदा जिनकी मैया,
ऐसे है हमारे कृष्ण कन्हैया-
युग युगांतर से जब-जब
प्रेम की परिभाषा दी गई...
तब-तब राधा-कृष्ण के
अटूट प्रेम का उदाहरण दी गई...
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राधा के सच्चे प्रेम
का यह ईनाम हैं
कान्हा से पहले लोग
लेते “राधा” का नाम हैं ।-
राधा कृष्ण का मिलन तो बस एक बहाना था,
दुनियाँ को प्यार का सही मतलब जो समझाना था।..-
आप ही हमारी हर रंग है
और आप ही हमारी खास है
आप ही हैं जिस्म हमारी
और आप ही लिबास है
आप ही हमारी राधा है
और आप ही हमारी सीता
आप ही है आगाज़ हमारी सुरमई बांसुरी की
और आप ही उसके गीत के शब्दों की संज्ञा
सर्वनाम और पूर्ण विराम है।
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