Jagruti  
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Joined 15 November 2020


Joined 15 November 2020
25 MAY AT 14:24

ऊन ओल्या दगडी साऱ्या
किती ह्या वाटा रोज दिसे
पर्व उठले संथ रडूनी
चार नेत्र जर का उठे..!
खेळ सारा या नभीचा
चंद्र सूर्या तोच रचे...
निराकार की गोलाकार
अंत आरंभ एक दिसे!
भट्ट बोले गोल हे सार
तर सारे एक कसे...
ओलांडून तो एक अंत
आरंभ तर शुन्य असे!
ज्ञात अज्ञात आपण कोण ?
विचार सारे अंत भुके
सर्व चक्रांनी मिळून मी
कधी चाले कधी चुके !

मी मन आहे खगप्राणी
काल माझा कर्म धार
जागृती मज शीर्ष भेट
शब्द माझे काव्य सार!

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10 APR AT 15:28

तुम अंत कहो और मैं हो जाऊँ,
किसी साहित्य के इक हिस्से का
तुम कहो तो आरंभ बन जाऊँ,
शेष रखी उस सभ्यता का
किसी पूर्ण से अब मोक्ष ले आऊँ,
सुकून तो बस समझ में है!!

तुम पढ़ो कभी फुर्सत में हमें,
और सुकून को इससे आगे क्या लिखूँ?

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5 APR AT 12:58

कधी वाटते मज क्षणिक क्षण हे
ओठून वाहे जसे निरंतर मन हे

येता....जाता.. कोठे विसावे !?
काळ माणसांत उभे पुरे घन हे..

शब्दांपरी आज डोळे पहावे
वाटे मज पर सांडते व्रण हे..

पडीक सुखांना कोणी पुसावे
चार पावसातच ओलांडते जन हे

उभारल्या काठी ज्या हाथापाया
रातीत त्यांना मोडेल पण हे

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25 MAR AT 21:01

बीते सारे वो कॅलेंडर इक आज को खत्म करते करते
मरे हजारो उसके जैसे पर मरा न सिर्फ वो इक आज

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6 FEB AT 19:29

कागज कलम कविता ग्रंथ सब कम ही रहेगा बाबूजी
उसकी उपमा में उसी को लिखो तो सही रहेगा बाबूजी

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3 FEB AT 23:58

कहो उगाऊँ मैं सूरज को रात में
मेरी छत का चाँद सो रहा है अभी

इन होंठों को भी आज सुनने दो
कानों को होने दो गुलाबी गुलाबी

कहो घुमाऊँ सारे रास्ते तेरे घर
ख़्वाहिश तुम्हारी, तुम निकालो ज़रा भी

तुम कहो बादलों को बिछा दूँ
ये रही आसमानों की चाबी

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3 FEB AT 13:30

वे पेड़, पक्षी और इंसान आकाश को छूने की कोशिश कर रहे थे—
और धरती अंत में भी उन्हें अपनी गोद में समेट रही थी, जिसे वे जीवनभर कुचलते रहे!

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2 FEB AT 11:30

आते नहीं शब्द छूटे हुए एक बार,
गर मार पाओ हवाओं को तो लौट आना।

मैं करूंगी याद एक-एक अक्षर के टूटने की,
तुम उन्हें जोड़ते हुए वापस लौट आना।

हर फटता पन्ना गर अंधेरा लाता है,
तुम वो आधा चाँद बन के लौट आना।

मिलावट से दूर शुद्ध गज़ल लिखूंगी,
तुम बस उसका शीर्षक बन के लौट आना।

पूरी कहानी सौंप दूँ तुम्हें गर चाहो,
बस तुम उसका अंत बन के लौट आना।

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2 FEB AT 9:36

नामुमकिन कुछ नहीं, हौसला बनाए रख,
हवा भी रास्ता देगी, तू रफ़्तार बनाए रख।

घटा गर चाहे रोके रौशनी की चाल को,
चिराग कह रहा है, तू शमा जलाए रख।

जो टूटने का डर हो, वो कैसे जीत पाए,
शिकस्ता राह में भी तू सूरज उगाए रख।

मोहब्बत हो, जुनून हो, या हो कोई मंज़िल,
यक़ीन के फूलों से अरमान सजाए रख।

ज़मीं हो या फ़लक हो,रुकेंगे क्यों क़दम तेरे,
सफ़र की धूल को भी तू मेहंदी बनाए रख।

वो डर जो तुझे रोकता है, वो टूटेगा हर बार,
तू हर हाल में खुद को सितारा बनाए रख।

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29 JAN AT 19:01

About the tear-stained pillows
That have soaked more truths
Than the world ever heard.

About the silent hands
That stitch dreams for others
Yet never hold their own.

About the fading footsteps
Of those who walked away
Without leaving a trace.

About the empty chairs
That once held stories
But now only collect dust.

About the weight of a sigh,
The burden of words
That never took flight.

Not everyone writes—
Not because they don’t feel,
But because some pain
Refuses to be caged in ink.

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