ये मेरे वसंत की बहार
ये मेरे ख्वाबों के हकदार
अब देर न करो आने में
ये अस्क करता तेरा इंतज़ार।-
सूरज आया भागा अंधियारा
चहूँ ओर फैला उजियारा
पक्षी भी चहचहा रहे
मधुर संगीत सुना रहे
चलो हम भी उठ जाए
प्रकृति का आनंद उठाए-
प्रकृति नियामक है क्या?
प्रेम की प्रसव पीड़ा के
तदुपरांत द्वन्द्व ही
अवतार लेता है....-
उड़ते थे जो कल तक आसमानों मे.
बंद हैं आज मकानो मे.
हर किसी का वक़्त आता है.
प्रकृति है भाई! तू उसको क्यूं आंख दिखाता है.-
Kabhi beth kar dekho prakrati ke in nazaaro ko.
Kabhi suno hwaoo ke suro or tallo ko.
Kabhi dekho asmaa ko pyar se utha k in nigaho ko.
Kabhi mehsoos kro suraj ki kirno, toh kabhi timtimate hue sitaro ko.
Kabhi samzo Jharno ke behte hue pani, toh kabhi dubte hue kinaro ko.
kabhi beth kar dekho prakrati ke in nazaaro ko.-
मेरी सूनी सी बगिया में
खिल जाये वसंत बहार
ऐ- प्रकृति सुन ले तू
अब मेरी एक पुकार।
पूरी कविता कैप्शन में पढ़ें।
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अब ना देरी कर,
ना और विचार कर,
बस लग जा 'बेटा' काम पर,
करले कुछ अपने दम पर
जी तोड़ कर मेहनत कर।
कविता: मेहनत कर
(कृपया सम्पूर्ण कविता शीर्षक में पढ़ें)-
ये नजरे नही अंदाज है
देखो प्रकृति में सब कुछ खास है-