"सुख" या "खुशी"
असल में
एक "मिथ्या" है,
एक "भ्रांति" है,
"सुख" को पा जाने में "सुख" नहीं है,
असल में "सुख पा जाने की संभावना" में "सुख" है,
और "सुख" मिल जाने पर तो, सब ओर दुःख ही दुःख है,
ये बिल्कुल वैसा ही है, जैसे
"गुरुवार, शुक्रवार जैसा सुकून शनिवार व रविवार में कहां..."
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