गई खुशी,
जो अक्सर मेरे पास आती नहीं,
तमाम रात,
थोड़ा हँसा कर,
थोड़ा रूला कर अपनापन जता गई!
जाते जाते कह गई,मैं यही हूँ तेरे साथ,
फिर कभी तन्हाइयों में दस्तक दे जाऊंगी!
जब कभी तू अकेला हो तेरे साथ ठहर जाऊंगी!
तुझे अपने आज में जीने का हुनर सीखा जाऊंगी!
तू मेरे काँधे पर सर रख कर रो लेना जी भर,
जब सुबह होगी तुझे नयी उम्मीद दे जाऊंगी!
यहाँ तमाम ऐसे भी है,जिनकी किस्मत
तुझ जैसी भी नहीं!
जो तुझे मिला,
वो उनकी किस्मत में दूर तक भी नहीं!
तुझे हौसला है खुद को सँभालने का,
कुछ खुद के लिए और
कुछ दुसरो के लिए कर जाने का
तू हिम्मत बाँध फिर खड़ा हो
अपनी ज़िन्दगी फिर सवारने के लिए
बीती ज़िन्दगी से सबक ले के
एक नयी कहानी लिखने के लिए!
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