॥बस रिश्तों की खातिर॥
बंदिशे ,पबंदियां जो सुनता है सहता है।
बस रिश्तों की खातिर॥
दुख तो सबसे ज्यादा उसे ही होता है।
जो बर्दाश्त करता है ,
बस रिश्तों की खातिर॥
सबकी ख़ुशी के लिए उसने ,बहुत से हिस्से किए हैं खुद के।
बस रिश्तों की खातिर॥
पर उससे ही सबने रिसते तोड़े है।
दूसरों से रिसते रखने के ख़तीर॥
उसकी ही ख़ुशियाँ छीनी है।
दूसरों को ख़ुश करने के ख़तीर॥
उसको ही नीचा दिखाया है।
खुद को ऊपर रखने के खतीर॥
और उसने सब समझा पर कुछ ना बोला मुस्कुराता रहा।
बस रिश्तों की खातिर॥
बस रिश्तों की खातिर॥
✍️म
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