ख़्वाबों को खाख बनाते जा रहे है, जिंदगियों में आग लगाते जा रहे हैं ये लत है, कुछ ऐसी जनाब! युवाओं को राख बनाते जा रहे हैं।
दुनियाँ जिसे कह रही है दर्द की दवा, वो हर ज़ख्म को नासूर बनाते जा रहे हैं चले कुछ ऐसी मुहिम मियाँ, मैं भी कहूँ ना, तुम भी कहो ना, सब मिलकर कहें 'घुआँ' को ना।