निराला की मस्ती
महाकवि निराला को अक्सर किसी चीज़ की धुन चढ़ जाती तो वे उसी में डूबे रहते। मृत्यु से पूर्व एक बार उन्हें अंग्रेज़ी काव्य की धुन सवार हो गई तो उन्होंने तमाम अंग्रेज़ कवियों को पढ़ डाला। मिल्टन और शेक्सपीयर उन्हें ख़ास तौर पर पसंद थे और अक्सर कहते थे कि कविता में इन दोनों को कौन पछाड़ सकता है। एक बार होली के दिन सुबह से ही निराला जी विजया के रंग में थे और मौन धारण कर रखा था। आने वाले लोग उनका मौन देखकर चले गए। बस गिनती के लोग रह गए। किसी ने निराला जी से कहा कि होली का दिन है पंडितजी, इस वक़्त तो कोई होली होनी चाहिए। निराला जी को होली गाने की धुन सवार हो गई तो लगे होली गाने। उस दिन करीब ढाई-तीन घण्टे तक निराला जी होली गाते रहे। जब गाते-गाते मन भर गया तो कुछ देर चुप रहने के बाद बोले, बस यहीं हिंदी की इन होलियों में मिल्टन और शेक्सपीयर हिंदी से मात खा जाते हैं!-
कोई मशविरा हबीब जैसा!
दिल भी है,बेतरतीब जैसा!
आज के उजाड़ दो हस्ती भी,
होना है हश्र भी ग़रीब जैसा!
मेरा हाल कुछ भी नही अब
हाँ जरूर है वो अजीब जैसा!
मेहनत से बनाया मक़ाम,
मेरे पास नही नसीब जैसा!
मैं तोड़ के बैठा रिबायतें,
हूँ थोड़ा बदनसीब जैसा!
तन्हाई में ख़ुदको कैद किया
तन्हाई में खुशनसीब जैसा!
"सुख़न" वो पास नही है,
लगता तो है क़रीब जैसा!-
निराला हो ,वास्तव में निराले हो
मुझे सबसे प्यारे हो
प्रेम है ये मेरा ,अनुराग ना समझो
मुक्त छंद-सा मुझे खुद से मुक्त ना
समझो
तुम्हें रचती हूँ, तुम्हें पढती हूँ
मैं तो दीवानी हूँ
मुझे आशिक ना समझो-
साहित्य के क्षेत्र में अपनी कलम
की स्याही बहाई
यथार्थ की कठोरता को समेटते
हुए समाज कि सच्चाई दिखाई
"वर दे वीणावादिनी" से लेकर
"सरोज समृति"- सा हिंदी के इतिहास
में पहला शोक गीत रचा...
अंदर के शृंगार को उजागर कर
"बांधो ना नाव इस ढांव बंधु" को
कलम की रसपूर्ण स्याही से सींचा
स्वतंत्र चेतना उजागर कर कविता में
नया प्रवाह पैदा किया......
मुक्तछंद कविता का संस्कार इन्होंने
किया........।।.
"वह तोडती पत्थर "से "जागो फिर
एक बार" सी क्रांतिकारी लहर चलाई
निराला ने हिंदी में एक अनोखी पहचान
बनाई.....।।
"आत्मा के थे वे उजाला कुछ निराले थे महाप्राण निराला"
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Tanhai ka ahsas bhi nirala hota hai
Sabse chupa ke aankhon ko bhigana hota hai-
हाय बचपन भी कितना प्यारा था
दुनिया की पहरेदारी से सुरक्षित एक जहान प्यारा था
लड़के लड़कियां बिना किसी शर्त और रुकावट के
एक दूसरे के खेल खेला करते थे
सच में बचपन सबसे निराला था
यहाँ समानता का बोलबाला था
वक़्त बीता, रस्में बदली और बदले रिवाज
निगल गए अपने साथ बचपन के वो अंदाज
क्या कहें अब बचपन कितना सुनहरा था
चंद लम्हों में कैद अब यादों का किनारा हैं!-
मेरा पहला प्रेम हो तुम
साहित्य की देन हो तुम
हृदय की अनुभूति का
संस्कार बन गए हो
वास्तव में जीवन प्राण
बन गए हो .....
जूही की कली हूँ मैं
तुम्हारी
वर दे वीणावादिनी में
सरस्वती मां से करती
हूँ पुकार तुम्हारी
काव्य को छंदो से मुक्त कर
मुझे प्रेम के छंदो में लपेट
दिया है तुमनें
हां वास्तव में तुमसे
निशच्छल प्रेम किया है
हमने ..💓❤-
अंदाज़ ए इश्क़ हमारा बिल्कुल निराला है,
बेवफ़ाई का इल्ज़ाम अपने दिल पे डाला है।-
राधा का रंग था गौरा मेरे कान्हा का रंग था काला
लगा दोनो को प्रेम का रंग
बन गया ये निराला-