हो रही है हालत खराब शराब चाहिए!
सुकूँ चाहता हूँ मैं ज़नाब शराब चाहिए!
आँधियों से कुछ अपनापन रहा है मेरा
उड़ रहा उसका हिज़ाब शराब चाहिए!
आज एक शराबी ने एक ख़्वाब बताया
मुझे देखना है वही ख़्वाब शराब चाहिए!
वो एक ग़ज़ल जिसमें नही उसका जिक्र
वही पूरी पढ़नी है क़िताब शराब चाहिए!
जिंदगी है ख्वाहिशें है अड़चने है वो नहीं
कब निकलेगा आफ़ताब शराब चाहिए!
सुख़न तुम क्यों पीने लगे हो आजकल
वो लगने लगी है लाजबाब शराब चाहिए!-
और माँ हिंदी का बेटा हूँ!!
बताने के लिए कुछ भी नही है!
चलिए कुछ ... read more
बहुत शोरगुल था "सुखन" ज़ेहन में मेरे
तुमने मेरी खामोशी को नजरअंदाज किया!-
मेरे किरदार से झाँको मेरे हो जाओ!
तुम दूर मुझसे जाओ मेरे हो जाओ!!
जी भर के रो लो गमज़ार हो जाओ!
भले गैर को ही चाहो मेरे हो जाओ!!
अफ़साना-ए-दिल बयाँ करो अदू से
खैर मुझको रुलाओ मेरे हो जाओ!!
है शौक तुमको पर्दा-ए-चिलमन का
खूब खुदको छुपाओ मेरे हो जाओ!!
है धुन धड़कन में तुम्हारे जो नाज़नीं
रक़ीबों को सुनाओ मेरे हो जाओ!!
हमसे नही है इश्क कोई बात नही
झूठा प्यार ही जताओ मेरे हो जाओ!
ज़ब्त का आदी है "सुखन" नाज़नीं
सुनो मुझको सताओ मेरे हो जाओ!-
ज़ब्त-ए-हसरत लिख दूँ क्या हसरत पावन हो जावेंगी
मैं इतना दर्द लिख दूँगा कि अँखियाँ सावन हो जावेंगी!!
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मैं जिंदगी भर माँगता रहा सुकून "सुख़न"
तब जाकर कहीं माँ की गोद हुई है नसीब-
मुझे तो तेरे पास कोई गम नही लगता!
तभी तू मुझे संजीदा सनम नही लगता!
हाँ एक शख्स जल रहा है मेरे अंदर
मुझको यकीं है हाँ वहम नही लगता!
अब तो गम भी लगता नहीं लगाने से
मुझको ये गम है कि गम नही लगता!
रोज उड़ा देता हूँ परिदों को शज़र से
बहुत ज्यादा हूँ पर बेशरम नही लगता!
वो लगता तो है कभी-कभी मेरे लबों से
दुःख इस बात का है पैहम नही लगता!
हर वक़्त ये लगता है तू मौजूद है कहीं
तू साथ होकर भी हम-दम नहीं लगता!
उस चाँद को आज पहली दफ़ा छुआ
'सुख़न' वो नाज़ुक है नरम नही लगता-
मैं बर्बादियों से लिपटा बेइंतहा मुसाफिर
तन्हा रहना है मुझे मैं तन्हा सा मुसाफिर
किस तरफ़ को लेकर चल पड़ी है जिंदगी
मैं बहुत अय्याश और लगड़ा सा मुसाफिर
मरहम सी बातें न सुनीं कभी न कही कभी
मैं कभी गूँगा और कभी बहरा सा मुसाफिर
मैं भी अपना हाल-ए-दिल कैसे कहूँ जानां
दुनिया की फ़िक्र में मैं खोया सा मुसाफ़िर
उतार-चढ़ाव मोहब्बत की नीयत है साकी
वो कभी डूबा तो कभी उभरा सा मुसाफ़िर
वो जिस शख़्स से तुम सब आशना से हो
उसकी याद में रात भर रोया था मुसाफिर
जमानेभर की मोहब्बत में आग लगाकर
'सुख़न' आज सुकूँ से सोया था मुसाफ़िर— % &-
हाथों का अपने हुनर नापते है!
चलो आज उनकी कमर नापते है!
वो जो नापते है जख्मो में ख़लिश
वही लोग तपिश में सफ़र नापते है!
हम नापा करते है तुम्हारा किरदार
उसके बाद अपना घर नापते है!
इसलिए तीरगी से हुई हैं मोहब्बत
हम चरागों का असर नापते है!
हर पैमाना छोटा पड़ जाता है!
तुझ पर पड़ी हर नज़र नापते है!
हम तो पीना छोड़ चुके है लेकिन
शराब में है कितना जहर नापते है!
तुम्हें भी याद किया जाएगा "सुख़न"
आज कल लोग खंडहर नापते है!— % &-
वो चराग़ बुझाते रहे रातभर!
हम तीरगी बुलाते रहे रातभर!
मैंने पकड़ा फ़िर हाथ उसका
हम चाँद टहलाते रहे रातभर!
फ़िर हथेली रखकर माथे पर
वो हमें समझाते रहे रातभर!
पहली दफ़ा उन्हें छूने को हुए
तो हम कंपकपाते रहे रातभर!
फ़िर यूँ हुआ नब्ज़ टटोली गई
वो हमें उकसाते रहे रातभर!
वो जो कभी देखते न थे मुझे
वही मुझे सताते रहे रातभर!
बदन के उतार चढ़ाव देखे गए
वो नींद से जगाते रहे रातभर!
पानी बचाने का हुनर भी आया
यूँ वो आग बुझाते रहे रातभर!
"सुखन" तुम्हें शर्म नही आयी
तुम भी मुस्कुराते रहे रातभर!-