पतझड़ का मौसम है,
पेड़ों से पत्ते गिरना
तो कुदरती है,
मग़र.....
इन इन्सानों का क्या.. ?
जो बेमौसम नज़रों से
गिरे जा रहे हैं।।-
तेरा यूं सजना संवारना
नज़रों को झुकाना
बस मुझे यहीं
अदाएं तेरी
ओर खींचती है-
न बम की मेहरबानी...
ना गोलीयों की मेहरबानी....
हम घायल हुए हैं जो...
आपकी नजरों की मेहरबानी...-
Jo nazron se hmesha
rehta hai door
Wo question exam me
aata hai zaroor..😐-
मेरी मुहब्बत को,
अपनी जरूरतों में तौलता रहा।
ख़ामोश शख़्स,
मुझे नज़रों से यही बोलता रहा।
-
शर्म का आईना भी ज़रूरी है,
हर बात कह पाना लफ़्ज़ों में
मुमकिन ही कहाँ होता है,
कुछ नज़रों से पढ़ जाना
भी जरूरी है!!-
इन नज़रों के मिलने का ही तो सारा खेल था ।
वरना चाहने वाले तो बहुत घूमते हैं इन गलियों में तुम्हारे।-
Apni nazron mein aache hain
Sabki nazron ka theka nahi le rakha hai..!
❤️❤️❤️-
जो जितना दूर होता है
नज़रों से....
उतना ही वो दिल के
पास होता है....
मुश्किल से भी जिसकी
एक झलक देखने
को ना मिले...
वहीं जिंदगी में सबसे
खास होता है...-