जिन्दगी बता तो सही,
कितना चला, कितना सफर बाकी है ?
कहा जिन्दगी ने,
अभी देखा ही क्या है? ये तो सिर्फ झांकी है ।।
चलता चल, चलता चल सोचकर समय न गवां ।
मत देख पीछे, तेरे पीछे है या नहीं कारवाँ ।।
मैं हूँ न साथ तेरे, और भरोसा किसका ?
रह गया है सबकुछ यहीं, जो था जिसका जिसका ।।-
।। मैं - एक परिचय ।।
मैं तो ठहरा पुरातनपंथी, राम का भक्त रामायण पाठी ।
रामायण से शिक्षा मिलती, जीव समान सकल जन ,जाति ।।
अंगवस्त्र कुर्ता और धोती, शुद्ध सात्विक भोजन देसी ।
नहीं चाकरी थोड़ी खेती, गोमाता दरवाजे रहती ।।
जननी जन्मभूमि से बढ़कर, कोई नहीं महान ।
प्राचीन संस्कृति भारत की, जिसकी करता सम्मान ।।
विद्यादान से उत्तम जग में, कोई नहीं है दान ।
घर पर ही छात्र छात्राओं को, करता विद्यादान ।।
पंथ अनेकों हैं लेकिन है, ईश्वर एक महान ।
मेरा भारत देश महान, जय भारत जय हिन्दुस्तान ।।
बिहार राज्य में भागलपुर के, सगुनी गाँव से आता हूँ ।
खेती, स्वाध्याय और शिक्षण, तीन कार्य मैं करता हूँ ।।
🙏 जयश्री राम जी 🙏-
ये किसका असर है, जो फैलता जहर है ।
पहाड़ अपना ही पत्थर खाने लगे,
समुंदर अपना ही पानी पीने लगा ।
गुलाब के कांटे उसे ही चुभने लगे?
क्या होरहा है, क्या है होने वाला,
दिमाग का निकलने लगा दिवाला ।
कहां रुकेगी दुनिया, कैसे बचेगी दुनिया ।
अब ईश्वर ही है रखवाला ।।-
धधकती अंर्तज्वाला,
या पीना पड़ता है, हलाहल का प्याला ।
देख कर कुरीतियाँ ।
मानवता विवस, किंकर्तव्यबिमूढ, अक्षम!
कितनी तेजी से हो रहा उत्थान या पतन !
अनिर्णय की स्थिति ।
एक ओर नहीं चारो ओर, परिवार में, समाज में,
राजनीति में या विकास की होड में ।।
आवश्यकता, मजबूरी या फिर स्वार्थपरता ?
प्रश्न ही प्रश्न लेकिन उत्तर नहीं! !-
मैंने स्वर्ग तो नहीं देखा है, लेकिन सोचता हूँ,
जहाँ सुख-दुख, नफरत, द्वेष, ईर्ष्या आदि कोई
विकार न हो, सिर्फ प्रेम ही प्रेम हो आनंद ही आनंद हो,
वही स्वर्ग होता होगा ।
फिर अगर मन में, दिल में ये विकार रह गए,
तो क्या स्वर्ग में भी स्वर्गीय सुख का अनुभव होगा ?
शायद नहीं! !-
आज के गर्भ में छिपा, कल का सवेरा,
कल हो न हो,कर्म प्रकाश तो रहेगा.-
जाति से ब्राह्मण, लेकिन हिन्दू न मुसलमान हूँ ।
सिर्फ और सिर्फ इंसान हूँ ।।
ख्वाबों में भटकता नहीं, यथार्थ से वास्ता है ।
सत्य भाषण और स्पष्टवादिता मेरी कमजोरी है ।।
भ्रम मैं पालता नहीं, न ही निराशावादी हूँ ।
शब्द चुनता हूँ, जिससे कुछ प्रेरणा मिले ।।
मिलने की खुशी लेकिन, बिछड़ने का गम नहीं ।
कोई न मिले तो अकेले भी कम नहीं ।।
🙏 नमस्कार 🙏-
⛳मनुष्य की अभिलाषा ⛳
सर्वोत्तम प्राणी, आया जब धरा पर,
थोड़ा घबराया, थोड़ा चकराया ,
नदी, पर्वत, जंगल, हिंसक, अहिंसक जीव ।
थोड़ी मुश्किल हुई, वजूद बचाने में ।
फिर शुरू हुआ, संघर्ष उसका ।
विजय प्राप्त करता गया, हौसला बढता गया ।।
पृथ्वी के बाद उसकी दृष्टि आसमान पर पड़ी,
अब उसने अजेय बनने की ठानी ।
अति महत्वाकांक्षा, अमृत और जहर प्राप्त किया उसने ।
अपनी धुन में बढता जारहा, प्रकृति के नियम तोड़ता जारहा ।
क्या अजेय हो पाएगा, या फिर अपना वजूद खो बैठेगा ।
बड़ी गंभीर पहेली है-