सुकून खरीद सकें, तकलीफ़ बेच सकें, है ऐसा तो कोई बाज़ार नहीं,
दौलत खुशी ज़रूर दे सकता है, बन सकता खुशियों का पहरेदार नहीं,
फिर भी न जाने क्यों दौलत की गर्मी दिखाकर उछलते हैं इंसान यहाँ,
बेशक पैसा तो ज़रूरी है जीने के लिए पर इसे बनाओ अहंकार नहीं,
दौलत जेब में अच्छी लगती है दिमाग में आ जाए तो जंग लगा देती है,
फिर ज़िन्दगी ऐसे बेरंग होती, कोई भी रंग लगा लो है असरदार नहीं।
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