जिंदगी तो जंग है इसे तुझे ही लड़ना होगा
जीवन की परीक्षा में खुद को साबित करना होगा
ईश्वर भी साथ देता है जो प्रयासरत है कर्म में
उस लायक पहले तुम्हे खुद को करना होगा।।-
फ़सादी, फरेबी, मक्कार है ये दुनिया ग़र
खुलकर इसपे लांछन तमाम लगा,
'मलिक' गलत तो कई बार तू भी होता है
खुद के सर भी कुछ इल्ज़ाम लगा..-
जीते जी मेरा दम निकल गया बारिश की उस बूंद में
जब वो अचानक से मिल गया बारिश की उस बूंद में,
मैं उसके सामने था और वो मेरे पास से होकर गुजरा
फिर तो पूरा माहौल बदल गया बारिश की उस बूंद में,
मेरी तन्हाईयों में उसकी यादें किसी छाँव के जैसी थी
फिर हिज़्र की धूप में जल गया बारिश की उस बूंद में,
वो मेरी तरफ मुस्कुरा कर रक़ीब को गले लगाता रहा
ये देखकर मेरा दिल छिल गया बारिश की उस बूंद में,
वो हमेशा झूठ बोलकर बहलाता था मुझे पर इस बार
वो ख़ामोशी से ज़हर उगल गया बारिश की उस बूंद में,
इस दफा भी मैंने उसको जाते वक़्त माफ कर दिया था
'मलिक' पर कैसा जादू चल गया बारिश की उस बूंद में...-
As night falls and the hour comes when I am trying my best to sleep meanwhile my heart pulls her memories into my mind And in this way a person sitting away is snatching our peace... This surprise me a lot...
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सोलह दूनी आठ कहा तो सोलह दूनी आठ है
जी हाँ आज मेरी कविता का शीर्षक 'जाट' है,
गुस्सैल, अनपढ़, जाहिल, गंवार सब कहते है
मगर दिल टटोल के देखो वो कितना साफ है,
और दुनिया पागल है सरकारी नौकरी के पीछे
पर देख भाई इनके तो सिर्फ खेती में ठाठ है,
कभी यारी तुम इनकी आजमाकर देख लेना
ये हर मुश्किल वक्त में खड़े यारों के साथ है,
चाह नही उसको किसी मखमली बिस्तर की
उसकी जिंदाबाद अपनी हुक्का और खाट है,
बड़े मेहनती, बिल्कुल देशी, ये हरफनमौला
भोले की दुआ, माँ-बापू का सिर पर हाथ है,
फिर ना तो हम डरते, ना ही किसी तै घाट है
फालतू कोई जो बोल्लै उसनै फिट कर देते,
अर थोड़ा बचकै रै क्यूंकि थारा यार 'जाट' है...-
किसी और से हम इश्क़-ए-जावेदाँ क्या करते
जहाँ उनका ठिकाना नहीं हम वहाँ क्या करते,
मेरे दिमाग ने वादा महज़ दोस्ती का किया था
दिल ने इश्क़ कर लिया इसमें मियाँ क्या करते,
फ़िर उनकी आंखों में बेवफाई की हद बची थी
ऐसे में उनके साथ आँखें लड़ाइयाँ क्या करते,
मैं किस ख़ामोशी से गुज़रा हूं लोग क्या जाने
जब ज़िंदा ही ना रहा तो दर्द बयाँ क्या करते,
उसने तो मुझे जलते हुए भी नहीं देखा यारों
गंगा में अपने जिस्म की राख़ रवाँ क्या करते,
जो परेशान है मेरी तन्हाई देखकर वो बताओ
हम उनके और रकीब के दरमियाँ क्या करते,
जिसे "मलिक" को ज़ख्म देकर सुकूं मिलता
वो ज़ख्म पर मरहम करने की हाँ क्या करते..-
ये नज़रे झुक गई ख़ामोशी है लब पर
जाने कौन सी दबी है दिल में बात 'मलिक' के
जिंदगी इक आग थी जलना था मुझको
कभी खाक़ कभी राख़ हुए जज़्बात 'मलिक' के
गुमसुम था मेरे दिल का हर एक कोना
इश्क़ के सब रस्ते वीरान हुए रातों रात 'मलिक' के
मेरी बातों को टाला मुझे आफत मे डाला
एक जवाब में उलझकर रहे ढेरों सवालात 'मलिक' के
हम तो कल भी तन्हा आज भी तन्हा
तब भी तन्हा थे जब बद से बदतर थे हालात 'मलिक' के
मेरी अहमियत युं बढ़ी मेरी मौत के बाद
फिर तो हर कोई रोया चलने की खातिर साथ 'मलिक' के-
मजार खाली है ईमान अब रसूल नजर नहीं आते!!
लहजे खो गए कही जो थे उसूल नजर नहीं आते!!-
Aye mere Malik
Meri galti ki itni badi saza mat de..
Me manti hun
Meine galti ki hai, kisi aur ko teri jagah rakh ke..🙏-