sourav malik   (✍️ सौrav_Mलिक 🖤)
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Joined 19 July 2019


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Joined 19 July 2019
13 FEB AT 16:00

हमनें चाहा नहीं किसी और को तुम्हें चाहने के बाद
ख़ैर तुम्हें इसका एहसास होगा हमारे गुज़र जाने के बाद,
आप लोग भी जी भर कर देख लो मेरे चेहरे की हँसी को
क्यूंकि कहानी बडी ग़मगीन है हँसने-हँसाने के बाद,
जब ख़ुद पर बीतेगी तो मैं भी देखूँगा ये तमाशा बैठकर
अभी तो बहरहाल सब चुप है मेरा घर जलाने के बाद,
मैं बदबख़्त अब खुशियों का बोझ नहीं उठा पाता
मुझे अब सुकून आता है अपना दिल दुखाने के बाद,
मेरे पागलपन ने ज़माने भर को इस कदर दिवाना किया
फिर तो साहब कई दिवाने हुए इस दिवाने के बाद,
और ' मलिक' बड़ी देर लगी उसको मेरी ओर देखने में
फिर देखता रहा मेरे जिस्म को पंखे से उतारने के बाद..

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19 JAN AT 1:12

समझता हूँ तेरी कोशिशों को के तू मुझको पा सके
फिर तेरी बेचैनी ख़त्म हो और तू मुझको भुला सके

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11 JAN AT 6:55

तुमसे बिछडा तो सबकी ज़ुबाँ पर इक सवाल हो गया
वो तो तुम्हें बड़ा चाहता था फिर भी छोड़ गया कमाल हो गया,
है आलम इस कदर के मेरी जेबें ग़म-ओ-दर्द से लदी रहती है
मोहब्बत के नाम पर मैं भिखारी की तरह कंगाल हो गया,
कभी हँसता हूँ ,तो कभी रो पड़ता हूँ अपनी बेबसी देखकर
सच कहूँ यार मैं हरगिज़ ऐसा नहीं था बस फ़िलहाल हो गया,
तन्हाई को सहारा देने के लिए कभी मय, कभी कश लेता हूँ
अभी भी कमरा धुआँ धुआँ है मेरा खाँसकर बुरा हाल हो गया,
और वो कभी लौटकर आए मेरे बारे में उसको कुछ ना बताना
फिर ज़्यादा ज़िद करने लगे तो कहना उसका इंतिक़ाल हो गया…

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21 DEC 2023 AT 4:06

पानी से भी हिचकियाँ ख़त्म नहीं होती,
आख़िर कौन हमें इस कदर याद करता है..

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19 DEC 2023 AT 21:10

उससे बिछड़कर मैं थके पाँव वापस घर आ गया
हिज़्र की चोट से तन्हा करना गुज़र-बसर आ गया,
वही कोहरा, वही सर्दी, वही जुदाई का मौसम था
होश-ओ-हवाश में आए तो समझा दिसंबर आ गया,
तेरे जाने से मेरा ज़िस्म मुसलसल मुरझा रहा है
मैं आज फिर से बिना खाये पिए दफ़्तर आ गया,
ज़माना जब पूछने लगा उससे बिछड़ने का सबब
मैं हर शख़्स की बातें टालकर इधर-उधर आ गया,
ना किसी को ग़लत कहा, ना बुरा कहा किसी को
फक़त ख़ामोशी से लिखने का मुझमें हुनर आ गया..

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26 OCT 2023 AT 19:53

इक मुद्दत तक उसके दिल में फ़क़त मेहमान बनकर रहे
कमाल का शख़्स था वो जिसका हम सामान बनकर रहे,
ख़ैर अब तो वो मुझको पहचान ने से भी इंकार करता है
मगर इक दौर ऐसा था जब हम उस की जान बनकर रहे,
दरअसल मेरे साथ एक मसला है के मेरा एक मसला है
हम उससे इश्क़ करके ज़माने में इक पशेमान बनकर रहे,
न जाने कब बिछड़न का रोग हमारे रिश्ते को निगल गया
और फिर मुसलसल फ़ासले हमारे दरमियान बनकर रहे,
चार दिन की मोहब्बत भी क्या आफ़त बनी ' मलिक' पर
चार दिन की ज़िंदगानी फिर तमाम उम्र बेजान बनकर रहे…

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23 AUG 2023 AT 23:48

एक अरसे बाद उसकी याद आई लिखने का सबब मिल गया
वो यक़ायक बिछड़ा था न जाने उसे कौन-कहाँ-कब मिल गया,
सलीक़े से वो शख़्स मुझ से आज-तक पल भर भी नहीं मिला
उसने मुझको जब-जब बुलाया, मैं उसको तब-तब मिल गया,
मुझ को तबाह करके उसने अपने दर का भिखारी बना लिया
मैं इस ग़ुमान में जी रहा था वो पास है मेरे तो सब मिल गया,
कितनी रुसवाईया हमने ख़ामोशी से अपने नाम लिखाई थी
लोग कहते थे के इक बा-अदब को क़ैसा बे-अदब मिल गया

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5 APR 2023 AT 23:07

गनीमत रही के नींद से जाग गए हम,
वगरना कुछ लोग तो सोते सोते मर जाते हैं...

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6 MAR 2023 AT 0:04

कोई तन्हा ख़ामोश शख़्स किसी मजार की तरह
मैं कोने में पड़ा रहता हूं रद्दी के अखबार की तरह,
सोचा तो इस बार भी था फुर्सत से मिलूंगा तुमसे
तुम इस बार भी जल्दी चले गए हर बार की तरह,
फिर इश्क़ का बाज़ार गर्म है और है जज़्बात भी
फिर कोई आगे आईए खरीदने ख़रीदार की तरह,
मेरे हाल पर रोने वाली चार दीवारें और एक छत
जो मुझको देखती है किसी मातम-दार की तरह,
आंखें मुसलसल बहती है और मैं मजबूर होता हूं
जेहन में गूंजती है यादें जब चींख पुकार की तरह..

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21 FEB 2023 AT 12:11

हम तस्वीर में दिखेंगे तुमको
जब सामने नज़र नहीं आएंगे,
जिंदगी का क्या भरोसा मेरी जाँ
कब कहां और कैसे गुज़र जाएंगे..

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