दर्द सीने में छुपाये रखा ,
हमने माहोल बनाये रखा ,
मौत आई थी कही दिन पहले ,
हमने मौत को बातो में लगाये रखा ,
Shayar..Madan mohan danish-
अब लगता हैं ठीक कहाँ था गालिब ने....!!
बढ़ते बढ़ते दर्द दवा हो जाता हैं.....!!-
पुकारे क्यों किसि से हम,
किसि से कुछ नहीं होता,
कोइ जब शहर से जाये तो रौनक् रुठ जाति है,
किसिके शहर के मौजूदगि से कुछ नहीं होता ।
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दर्द सीने में छुपाये रखा ,
हमने माहौल बनाये रखा ,
मौत आई थी कही दिन पैले ,
हमने मौत को बातो में लगाये रखा ,
Poet __~madan mohan danish~-
और क्या आख़िर तुझे ऐ ज़िंदगानी चाहिए
आरज़ू कल आग की थी आज पानी चाहिए
ये कहाँ की रीत है जागे कोई सोए कोई
रात सब की है तो सब को नींद आनी चाहिए-
पत्थर पहले खुद को पत्थर करता है,
फिर जा कर कुछ कमाल कारीगर करता है !-
और क्या आख़िर तुझे ऐ ज़िंदगानी चाहिए
आरज़ू कल आग की थी आज पानी चाहिए ।
ये कहाँ की रीत है जागे कोई सोए कोई
रात सब की है तो सब को नींद आनी चाहिए ।
इस को हँसने के लिए तो उस को रोने के लिए
वक़्त की झोली से सब को इक कहानी चाहिए ।
क्यूँ ज़रूरी है किसी के पीछे पीछे हम चलें
जब सफ़र अपना है तो अपनी रवानी चाहिए ।
- मदन मोहन दानिश
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दर्द के सूखते दरया में रवानी के लिए
कैसे-कैसे मैं जतन करता हूँ पानी के लिए
वरना बेमौत ही मर जाएँगे सारे किरदार
एक इनकार ज़रूरी है कहानी के लिए
आज उस पेड़ पे उग आए हैं तारे कितने
जिस पे इक चाँद बनाया था निशानी के लिए ।-