अपने हाथों को उसका सिरहाना लिख दिया ।
हमने तक़दीर को दौर पुराना लिख दिया ।
कलम उठाइ कल शाम हमने मुद्दतों बाद
और तो कुछ लिखा नहीं बहाना लिख दिया ।
पता पुछने आइ थी तन्हाई किसी और का
बेध्यानी में हमने अपना ठिकाना लिख दिया ।
कौन जानता है हमें यहाँ इतने क़रीब से
किसने नाम के आगे हमारे दिवाना लिख दिया ।
अभी नये नये शायर हुए हैं कुछ दिनों से
कोशिश ग़ज़ल की थी और फँसाना लिख दिया ।
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और क्या आख़िर तुझे ऐ ज़िंदगानी चाहिए
आरज़ू कल आग की थी आज पानी चाहिए ।
ये कहाँ की रीत है जागे कोई सोए कोई
रात सब की है तो सब को नींद आनी चाहिए ।
इस को हँसने के लिए तो उस को रोने के लिए
वक़्त की झोली से सब को इक कहानी चाहिए ।
क्यूँ ज़रूरी है किसी के पीछे पीछे हम चलें
जब सफ़र अपना है तो अपनी रवानी चाहिए ।
- मदन मोहन दानिश
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लौट आऊँगा घर मुझे लापता मत लिख ।
ख़त मुजे है लिख रहा तो पता मत लिख ।
सीख लेंगे हम भी हुनर जल्दबाज़ी का
फ़िलहाल सब्र को मेरी ख़ता मत लिख ।
खूबसूरत कोई मंज़िल भी लिख कभी
मुक़द्दर में मेरे फ़क़त रास्ता मत लिख ।
कर लूँ मैं भी बयाँ क़िस्सा मेरे हिस्से का
ऐसे एक-तरफ़ा सुनकर सज़ा मत लिख ।-
ख़ैर क़ुछ लिखा नही पर ख़याल तो आया
बेख़याली को हम पे रहम फ़िलहाल तो आया।
बग़ावत की उम्मीद कुछ थी भी नही ख़ास
ज़ुबान पे हमारी आज सवाल तो आया ।
ख़ाली दिल अब दिलासा देता है हाथों को
उसका साथ ना आया हाथ तेरे मलाल तो आया ।
शव भी मेरा कुछ मुझसा ख़ामोश ही रहा
कफ़न ना सही हिस्से उसके रुमाल तो आया ।
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ख़ैर क़ुछ लिखा नही पर ख़याल तो आया
बेख़याली को हम पे रहम फ़िलहाल तो आया ।
बग़ावत की उम्मीद कुछ थी भी नही ख़ास
ज़ुबान पे हमारी आज सवाल तो आया ।
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बक्श रहे हो ये जो इज़्ज़त, हमें इसकी आदत नहीं ।
इरशाद कहना कभी कभी, हमें कोई और शिकायत नहीं ।
ख़ुदा के बंदे भी हो और इश्क़ से परहेज़ भी
कतरे कतरे में है ख़ुदा तो कैसे इश्क़ इबादत नहीं ।
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जी लेते है थोड़ा वक्त है तो
लिखने को अभी उम्र पड़ी है ।
लूट जाने का ख़ौफ़ ही क्या
अलमारी में केवल सब्र पड़ी है ।
बंद ही थी कुछ वक्त से ये घड़ी
तुम मिली तभी से बेसब्र बड़ी है ।
दफ़ना दो गुनाह भी मेरे हो सके तो
फ़क़त शव को मेरे ये कब्र बड़ी है ।
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कुछ पौधे लगाए थे हमने जो अब पेड़ बन चुके है
वक्त भी क्या तेज़ गुज़रा कल के बच्चे अधेड़ बन चुके है ।
मुख्यद्वार से आनेजाने का अनुभव भी मैंने किया
हमारे क़िस्सों की गवाही देती है दीवारें वहाँ निशान बन चुके है ।
अपनी कक्षा देखी तो दो दशक पीछे गया मैं
पाइप चढ़ना खिड़की से आना जाना अब ख़याल बन चुके है ।
तरक़्क़ी हम ने भी की विद्यालय ने भी की
आज हम कामयाब और अध्यापक मिसाल बन चुके है ।
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