हम इज़हार-ए-मोहब्बत करने से कतराते है,
लोग मोहब्बत के नाम पर जिस्म से खेल जाते है..
(बुरा लगता है)-
ये जो तुम मेरे हर अल्फ़ाज़ पे भावुक हो उठते हो
तुम्हे लगता है, मैं अपने ही जज्बातों को उड़ेलता हूं
खबर है मुझे, इस दौर-ए-मोहब्बत-ए-हुस्न की
मैं शायर हूं जनाब, बस अल्फाजों से खेलता हूं..!!-
मैंने देखा है
'प्रेम' में
'निवाला' तोड़ते हुवे
'प्रेमी' को
'प्रेमिका' के लिए
कैसा होता अगर
'प्रस्तुति' का ये भाव
'प्रस्तुत' होता
'उत्पत्ति' के
'माध्यम' को
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न जिद्द है, ना ही जूनून है ,
उन पे मेरा न ही कोई कानून है ...!
किस्मत है , नसीब है ,
लेकिन लकीरों से मजबूर है ,
वो दिल के इतने पास है ,
फिर भी न जाने क्यूं हकीकत में बहुत दूर है ..!!
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मैं मुस्कुरा के रख दूँ , 'दिल' जेब मे तुम्हारे
तुम क्या करोगे मेरा , जब 'हम' न हो तुम्हारे-
ये तेरे प्रेम की वर्षा थी या छींटा।
मेरे प्रेम के गर्म तवे पर पड़ते ही हवा हो गई।।
😃😃-
इश्क़ में फना होने का अब दस्तूर कहां
मुसाफ़िर सा है इश्क़ आज यहां तो कल वहां-
दिल के किसी हिस्से में दफ़न राज आज भी है
उसे इश्क़ था कभी और मुझे इश्क़ आज भी है-
छोड़ते-छोड़ते ही सारा उम्र बीत जाएगा,
ज़िन्दगी के आखिरी मोड़ पर, अकेला ही रह जाएगा,
तरसेगा फिर कि कोई हाल पूछ ले,
कोई घास भी न डालेगा, चाहे कितना भी गिड़गिड़ायेगा।।
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