मालूम है ना होगी पूरी फिर भी
एक झूठी उम्मीद कब से हैं मन लगाये
धड़कने चलती है बस नाम कि
जिंदा हूं, पता नहीं क्या अंदर इसके है समाये
पूरे तो होते नहीं है ख्वाब मेरे
ना जाने किस आश में नींद से है जगाये
चाहतें किसी से नहीं है मेरी
फिर भी लोगों से है ये दिल लगाये
कौन हैं अपना क्या है वो एक सपना
कोई तो हो जो सब सच मुझे बताये
-(Taste_of_thoughts✍️)
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