तड़प तो देखो मछली की
ज़रा सी लालच में
जान गंवा बैठी-
خدا مجھ کو ایسی خدائ نہ دے
کہ اپنے سوا کچھ دیکھائ نہ دے
Khuda mujh ko aisi khudai na de Ke Apne siwa Kuch dikhai na de
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उल्फ़त की इज़्तिराबी जब उस'में पल गई
मछली ख़ुशी से प्यार का काँटा निगल गई-
विश्वास है सबको जाना है ख़ाली हाथ
फिर भी पता नही सारी उम्र गुजर देते है हाथ भरने में
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ज़मीं की जिरह मैं, "अरसे" बीत जाएँगे
कल के लिए आज ,और कितना गवायंगे
"ख़ाक" हो जाएँगे एक रोज़ हम और तुम
इस ज़मीं पर बस ये "ख़ाली" मकाँ रह जाएँगे .।
---भोज-
Kabhi kabhi hum kuch jyada ki ummid me...
Jo Hai usko bhi kho baithate Hai...
Aur phir Khali hath reh jate Hai...-
बहुत जिम्मेदारी से करते है वो काम जिनहे किसी चीज का लालच नहीं होता
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यूँ तो लिख के याद दिला सकता हूँ बिसरे हुए प्यार के फ़साने...
गिनवा सकता हूँ तुझको भी कितने हैं वादे निभाने...
पर....
...अब तेरे दिल में..."मोहब्बत" की जगह "लालच" बसर करता है...-
Ek Umar Guzaar Di Humne Bina Dil Liye Tmhare,
Aaj Tak Kisi Chij Ki Chah Na Rakhne Wali Mai
"Ab Dil De Kr Dil Lene Ki Lalach Kar Baithi Hu"-