मोहब्बत के समंदर में डूबते हैं दोनों ही
फ़र्क है इतना सा
एक तरसता कश्ती को है
एक तरसता साहिल को है-
सवार है इश्क़ की कश्ती में
जिसका कोई किनारा नही ,
पर सफर तय करेंगे
भले तू हमसफ़र हमारा नही.....-
Aaj kafi arse baad,
unke labo pe hmara naam aaya hai...
Kashti bhi waha le chalo hmari,
Jaha toofan aya hai...❤👌-
खुले आसमां में सितारों की बस्ती में
तुझको निहारूं रहूँ मैं मस्ती में
ऐ मेरे हमदम मेरे हमनशीं मेरे महबूब
चल चले कहीं दूर बैठ कर एक कश्ती में..!-
Socha na tha kbhi is kadar mulakat hogi...
Beech tufan me bhi...
Ek kasti humpe meherbaan hogi...
kehne ko to jhuka dete aasman bhi...
Agar humari kismat humari jagir hoti...-
Falak me apni jannat ke sitare nahi...
Hum unke hai par shayad wo hmare nahi...
Choti si naav lekar hum us samandar me utar gaye...
Jis samndar me door talak kinare nahi...-
पाँव होले से रख कश्ती से
उतरने वाले,
जमीं अक्सर किनारों से ही
खिसका करती है।-
एक दफ़ा फिर वो शाम-ए-वस्ल हो जाए....
तो इन सारी कशमकशो का क़त्ल हो जाए....
मंझधार में उलझी मिरी कश्ती साहिल को पा जाए.....
फ़िर कुछ ऐसा हो कि इश्क दोबारा हो जाए....-