Manoj Bora   (बोरा जी)
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Joined 24 May 2017


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Joined 24 May 2017
17 NOV 2023 AT 18:34

जीने का सहूर आने लगा है अब
इश्क़ का ख्याल भी जाने लगा है अब

सोचा है के उससे फ़ासला बना ले हम
वो हमको अपने करीब बुलाने लगा है अब

कुछ यादों को बिस्तर पे ले कर के सोया जाये
ये अकेलापन रात भर जगाने लगा है अब

जिसने ना कभी छोड़ा हो दामन जफाओ का
वो भी किस्से वफ़ा के सुनाने लगा है अब

जिसके साथ उम्र भर का साथ सोचा था
बस उसका साथ होना ही सताने लगा है अब

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21 AUG 2023 AT 6:29

रंग उल्फत का उतर जाएगा
सिमटा हुआ सब बिखर जाएगा

उसकी मोहब्बत में खुदा याद आया
वही खुदा हुआ तो किधर जाएगा

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20 AUG 2023 AT 6:51

ज़िन्दगी एक कहानी और किरदार हो गया मैं
हर रोज़ नया किस्सा कोई अख़बार हो गया मैं

मंज़िल का ठिकाना नहीं सफर में अब मेरे
खाते खाते ठोकर यूँ बेज़ार हो गया मैं

क्या बताएं क्या हुआ बस यूँ समझ लीजिये
क़त्ल किया उसने और गुनेहगार हो गया मैं

दिन ने ठुकराया मुझे रातों ने पनाह दी
यूँ ही नहीं अँधेरे का वफादार हो गया मैं

डूबा मैं ये सोच कर के जीना नहीं मुझको
और बहते बहते दरिया के उस पार हो गया मैं

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4 JUN 2023 AT 18:26

किसी को फूल किसी को काँटों से खार चाहिए
किसी को होश किसी को इश्क़ का बुखार चाहिए

खेलती है दिलों से वो नये जिस्म के लिए
हर मर्द से कहती है मुझको प्यार चाहिए

ख्वाहिशों ने मेरी सारी हदें तोड़ दी
पतझड़ के मौसम में भी बहार चाहिए

कैसे निभेगा रिश्ता ये वो भी तो मुझे सी है
तलवार रखने को तलवार नहीं मयार चाहिए

कोई कर के उससे मोहब्बत हो भी गया तबाह
कोई अब भी कह रहा है उसका दीदार चाहिए

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17 MAY 2023 AT 0:33

हाँ कुछ अरसे से बेहतर सोये नहीं हैं हम
याद किया है तुझको, मगर रोये नहीं हैं हम

टूट के बिखर जाएं ये इतना आसान नहीं
मोतियों की तरह धागे में पिरोये नहीं हैं हम

हकीकत से लड़ने में मशरुफ रहते हैं
बैठे कोई सुहाना ख्वाब संजोये नहीं हैं हम

ढल गया बचपन मेरा ले गया सुकून सारा
माँ की गोद में जाने कब से सोये नहीं हैं हम

मिल जाएगी मंज़िल भी वो वक़्त भी आजायेगा
बस राह से भटक गए हैं, खोये नहीं हैं हम

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23 APR 2023 AT 9:58

वही तौर-ऐ-ज़िन्दगी नया दौर नहीं आता
तेरे सिवा नज़र हमें कोई और नहीं आता

मैं ख़्वाबों की दुनिया में खोया हुआ तमाशा
हकीकत क्या है इस पर मेरा ग़ौर नहीं जाता

तू सुन तो ले के तेरे लिए क्या क्या लिखा था मैंने
तू सुन तो ले के मुझसे लिखा और नहीं जाता

मदहोशी के पैमाने तो उतर जाते हैं गले से
होश के टुकड़ो का मगर एक कौर नहीं जाता

झूठे निकले सारे तेरे आशिक मेरे सिवा
मेरे सिवा तेरी गली में कोई और नहीं जाता

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29 DEC 2022 AT 5:32

घर से बाहर तो जाना पड़ता है
अपने लिए खुद ही कमाना पड़ता है

वक़्त पे शाही भोज भी मिलता है
वक़्त पे जूठा खाना पड़ता है

ज़िन्दगी एक जुआ है जीतो या हारो
तकदीर को तो आज़माना पड़ता है

याद कर के तुझे रोते हैं खुद
खुद ही को फिर से हँसाना पड़ता है

खा के ठोकर मोहब्बत में सौ बार
इस दिल को पत्थर बनाना पड़ता है

मेरी ग़ज़लें मुझसे मेरा खून मांगती हैं
इस रिश्ते को यूँही निभाना पड़ता है

बूँद बूँद अश्कों के मोतियों से
मोहब्बत का क़र्ज़ चुकाना पड़ता है

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21 NOV 2022 AT 21:21

जीता रहा में बस एक लफ्ज़ 'आशिक़ी' में
क्या हुआ इससे मुझे हासिल आख़री में

उसे भी कोई और मिल गया होगा
मेरा भी दिल लग गया है शायरी में

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15 NOV 2022 AT 3:21

बागों में अभी आनी बहार बाकी है
गुलशन मैं गुल मिला बस खार बाकी है

कभी थी मानो जिनकी तादाद सैकड़ो में
आज गिनता हूँ दोस्त तो बस चार बाकी हैं

पलट के देखूँ तो दिन जिए कुछ हज़ार
जीने को अभी और कुछ हज़ार बाकी हैं

अभी जमुनों में वो रंगत नहीं आयी है
मिठास को बारिश की एक फुहार बाकी है

अभी गुमान टूटा नहीं है हुस्न का उसके
अभी उतरना सर से और बुखार बाकी है

मैं खुद का नहीं हूँ अब हो गया हूँ गैरों का
मालिक नहीं अब घर में किरायदार बाकी हैं

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7 NOV 2022 AT 1:33

बड़ा लम्बा अब ये सफर लगता है
रास्ता ही मुझे मेरा घर लगता है

तन्हाई का आलम ना पूछो मुझसे
अपनी ही आहट से डर लगता है

मुझे देख कर के मुस्कुराया भी नहीं
कमज़ोर पड़ गयी है नज़र लगता है

अमावस की रात और इतनी रौशनी
चरागों का है ये असर लगता है

कोई गांव था यहाँ जहा ये नदी है
कुदरत का ढाया कोई कहर लगता है

आपकी बेवफाई भी सह लेंगे मगर
फिर आदत हो जाएगी डर लगता है

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