मिट्टी सा है जीवन सबका
पर हर कोई
जीवन का शिल्पकार कहाँ...!
सबकी अपनी ज़हमत,अपनी-2 तृष्णाएं
बताओ इन नयी-2
कामनाओं का आधार कहाँ...!
रास्ते अलग, वास्ते अलग, चलना फिर भी
बदलते स्वरूप में
सबका मनचाहा संसार कहाँ...!
किसी की आँखें नम, किसी को दौलत भी है कम
बस मिल जाए मुट्ठी भर खुशियां
ऐसा कोई बाज़ार कहाँ...!
मनमर्ज़ी, खुदगर्ज़ी बेहिसाब तेरे में भी होगीं "रूचि"
सोने की चमक सा बेदाग़ हो
मिलता ऐसा कोई किरदार कहाँ....!!
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