इस ज़िन्दगी पर भला एतवार क्या करना
खुश रहो खड़ी रश्क़ की दीवार क्या करना
लौटने की उम्मीद हो तो चाहे करना ता-उम्र
उम्मीद ही नही तो फिर इंतज़ार क्या करना
मोहब्बत इबादत है करना तो करना सच्ची
वक़्त-ए-गुज़ारी वालो से प्यार क्या करना
किसी की दीद की तलब में बेक़रार ग़र हो
वो मिलाये न नज़र तो दीदार क्या करना
फ़रेब हो दिल में तो दिल रोशन नही होते
दिल न रोशन तो कोई अनवार क्या करना
कोई करे ख़ता तो दिल में दबाना 'साजिद
किसी की इज़्ज़त को बाजार क्या करना-
ज़िन्दगी कभी-कभी इन्सान को
कर्ण की तरह बना देती है,
सब कुछ जानते हुए ज्ञान होते हुए भी
खुद को ही विनाश की ओर ले जाती है,-
ना जाने कब किस बात पर रूठे...
इतना डरना पड़ता है...
उनकी एक मुस्कान के लिए...
क्या-क्या करना पड़ता है...-
कर्ण😢
मां थी मेरी मगर कभी मिली नहीं
भाई 5 थे मेरे मगर कभी मिले नहीं
पिता थे मेरे मगर कभी वो मिले नहीं
सखा श्याम थे मेरे मगर कभी साथ दिया नहीं
गुरु दूर्ण थे मेरे मगर कभी शिक्षा दिए नहीं
राज परिवार का हक था मगर कभी मिला नहीं
गुरु पशुराम थे मगर उनके जैसा अन्याय कभी किसी ने किया नहीं
देने के बाद छीन ली ऐसे गुरु पशुराम दूसरे मिले नहीं
नीची जाति समझ कर कभी सही सम्मान किसी से मिला नहीं
दुर्योधन मित्र बस एक साथ था दूसरा कोई खास अपना हुआ नहीं
हमेशा ही दिया सब को कभी कुछ मांगा नहीं
फिर भी कुछ अच्छा कभी हुआ नहीं
इन्द्र को भी भीख दी और उसके भी कुछ मांगा नहीं
हमेशा गलत हुआ कभी सही किसी से हुआ नहीं
मेरी सच्चाई किसी ने कभी कही नहीं
युद्ध में जाते समय सखा श्याम ने सच्चाई बताई ताकि मै लडू नहीं
फिर माता कुंती ने कहा मेरे पाचो पांडव को मारो नहीं
भीष्म ने पहले 14 दिन मुझे लड़ने दिया नहीं
आशीर्वाद किसी ने मुझे जीवित रहने का दिया नहीं
लड़ाई में सखा श्याम ने मुझे पहले अर्जुन से लड़ने दिया नहीं
कमजोर पड़ने पर सखा श्याम ने मुझे अर्जुन को रोका नहीं
साथ तो सारी कायनात थी अर्जुन के मगर मै डरा नहीं
लड़ा मगर जब सामने भगवान कृष्णा और हनुमान से मै जीत सकता नहीं
रक्षा उसकी करी सबने मेरा को कभी कोई हुआ नहीं
मेरी तो निहत्था की अस्त्र शस्त्र के साथ तो किसी में साहस था नहीं
हमेशा ही गलत हुआ सही किसी से हुआ नहीं
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Mushkilen hamesha qabil Logon k
Raaste me aati hain taa k wo in
Mushkilaat se muqabala kar k
Aane waale Logon k liye
Misaal ban saken.....
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परशुराम शिष्य वो, भास्कर का अंश था, ब्राह्मण सा धर्म जिसका, क्षत्रियों सा कर्म था,
ऊंच, नीच, छल, पीड़ा के जंजीरों में जकड़ा, राजकुमारों के समक्ष, सुत रूप में स्वर्ण था;
माफ़ करना कृष्णा मुझे पर, कुरुक्षेत्र के उस रणभूमि में कोई तुमसे भी श्रेष्ठ वर्ण था,
धर्म-अधर्म कुचक्र के संयोग में, जो सिर्फ मित्रता पे मर मिटा, वो एक अकेला कर्ण था।
🖋️🖋️🖋️ Kumar Anurag-