बहुत गिन लिए दूसरों के गुण दोष,
कभी अपने अंदर भी झांको ,
तो उड़ जाएंगे तुम्हारे होश.......❣️❣️-
सुना ना हो ऐसा एक किस्सा सुनाऊँ क्या ?
बड़़ी रुचि दिखा रहे हो, तुम्हें हकीकत बताऊं क्या ?
उसने सास को 'मम्मी जी' कहा और माँ को गाली देने लगा,
भेदभाव के एक नए नजरिए से, तुम्हें रूबरू कराऊं क्या ?
झूठ कलयुग में खड़ा है, सच को दफनाकर,
अब इस झूठी दुनिया को, सीना चीर के, दिखाऊं क्या ?
गलत स्त्री के साथ खड़ा है, सही स्त्री को मारे वो,
ये भेदभाव है कैसा, मैं तुम्हें समझाऊं क्या ?
शायद रुपया सर चढ़ा है, या वो 'मैं' में लीन हुआ,
खूनी रिस्तों का खून किया है, अब सबूत दिखाऊं क्या ?
एक ही छत के नीचे वो अंजान बना बेपरवाह सा रहता है,
'शादी' से बदली है उसने करवट, अब उसे मैं बुलाऊं क्या ?
शब्द भी शर्मा रहें हैं मेरे, इस कविता में उतरने के लिए,
बड़ी तकलीफों से लिखा है आधा सच, आधा कल बताऊं क्या ?-
खुद में इतने भी मशरूफ ना हो जाओ
कहीं अपनों की जिंदगी से ही दूर ना हो जाओ ।।
-SWATI PATEL-
कहते है प्यार और वक़्त किसी से मांगा नहीं जाता यूं तो अब हम काफ़िर हो गए जो अपनों से वक़्त मांग लिया और गैरों से वफा
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आज..
वो भी कर रहे है दिखावा
तुझसे प्यार का ए -माँ
जो खाने में एक रोटी और खाने की तेरी जिद़ पर तुझे "समझ नहीं आता " कह दिया करते हैं ..
आज फोटो तेरे संग डाल
जज़्बात लिख रहे है वो भी
जो तेरे लिख पढ़ ना पाने पर
महफिल में शरमिंदा हुआ करते हैं ..-
Sacchai jitni kaddwi ho..
utni hi zaruri hoti hai,
haqqiqat se dur bhaagne walo ko..
khushiyan kaha Naseeb hoti hai.-
कड़वा है पर सच है
मार्च, अप्रैल और मई
ऑक्सीजन नही है,
दवाई नही है,
हास्पिटल मे बेड नही है।
जून
लोनावाला की टिकट नही है,
महाबलीपुरम की टिकट नही है,
महाबलेशवर की टिकट नही है।
इस तरह हम कोरोना पर नियंत्रण बनाए हुए हैं।
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तवायफे सिर्फ जिस्म ही तो बेचती है,
वो भी भूख मिटाने के लिए।
लोग तो यहां ईमान तक बेच देते है,
अपना मतलब निकलने के लिए।-