खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी ।।
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घाटों और मंदिरों के शहर, ब्राह्मण परिवार में जन्मी पुत्री
बचपन में मनुबाई से जानी जाने वाली
घुड़सावारी, तलवार की शौक़ीन
झांसी के राजा गंगाधर राव की धर्मपत्नी
कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता
"बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी....."
वह कोई नहीं, वह भारत की महान वीरांगना रानी, "झांसी की रानी लक्ष्मीबाई" थी।।-
बुंदेलों हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी !
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी !-
चमक उठी सन 57 में वह तलवार पुरानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।-
तुम पक्की सड़क मोहल्ले की,मै खेतों वाली राह प्रिये,
तुम महँगी कॉफ़ी CCD की, मै बसंत की चाय प्रिये-
जों बनकर शोले के अंगारे बरसीं उन अंग्रेजो पे थी
घाट खड़ी कर दी थी जिसने वो वीरांगना लक्ष्मी नाम से पूजती थी।-
बदल गए रश्मो रीति रिवाजों के मायने इस जमाने में पर बदल ना सकी वाे परीक्षा आज भी उसकी जारी है।
पैदा होते ही मार दी जाती कोख में देती आज भी वही कुर्बानी है।
कोई दहेज लेता कोई करता उसकी नीलामी है
खूब है लडती मर्दानी सबके अन्दर बसती झांसी की रानी है
Woman #4
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विलक्षणता के गुण थे जिसमें,
वो विरांगना थी माटी की बनी।
जैसे रौन्दे मिट्टी शव को,
वो रौन्दने को दौड़ पड़ी।।
क्षत्रियों जैसा ताव था जिसमें,
घुड़ सवार वो हो चली।
मस्तक जिसके सुशोभित तिलक से,
रणभूमि की ओर वो निकल पड़ी।।
दुश्मनों का संघार करने,
काली का वो रूप धरी।
क्रांति की ज्वाला बनकर,
अट्ठारह सौ सत्तावन मेें धधक उठी।।
ब्राह्मण के घर में जन्मीं,
वो आज़ादी की लहर बनी।
जिसकी शम्शीर के सामने,
अंग्रेजी सेना काँपे खड़ी-खड़ी,
वो थी झाँसी की रानी ,
जो अन्तिम श्वास तक लड़ी।।
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१८५७ क्रान्ति कि साहसी ज्वाला अंग्रेजो के छक्के छुड़ाने बाली वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की १८५ वीं जन्म जयन्ती पर उन्हें सादर नमन...
आज झाँसी का नाम विश्व पटल पर लक्ष्मीबाई जी के नाम से सादर लिया जाता है।
#वीरभोग्यावसुंधरा
#झाँसी(बुन्देलखण्ड)कीरानी-