ए इश्क तू अपने अकेले होने का,
इतना भी गुरुर ना कर..
देख तेरे टक्कर की बीमारी आ गई.....-
जर्रों में तू बसा है, मैं आवाज सुनती रहूँ
आगोश हो तुम्हारा, मैं हर साँस जीती रहूँ
मंजिल तलक हो जब भी फासले दरमियाँ
तू साथ चलता रहे, मैं यूहीं प्यार करती रहूँ-
देखो ये मत कहना की प्यार नहीं किया,
मोहब्बत इतनी की तुमसे
कि इश्क नाराज़ हो गया,
और तीनों ने मिलकर
धोखा दे दिया हमें।-
हम कुछ और लम्हा साथ उनका चाहते हैं,
जो आंखों में बस जाए, वो बरसात चाहते हैं।
सुना हैं इश्क़ बेपनाह करते हैं वो हमे,
बस एक बार हम इकरार ए इश्क़ उनसे चाहते हैं।।
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ख़ामोश मोहब्बत
तुम इस ख़ामोशी की लज़्ज़त क्या समझोगे,
बाज़ दफ़ा चुप रहने में इज़्ज़त क्या समझोगे।
दिखावे से इतर दिल की गहराई में बसाया है,
नुमाइश पसंद हो, मेरी मोहब्बत क्या समझोगे।
ज़ेहनी तसो और चकाचौंध ही चाहत है तुम्हारी
पर्दे के पीछे की असल हक़ीक़त क्या समझोगे।
दिल से दिल कहाँ कभी लगाया है तुमने, फ़िर
नाकाम हुए आशिक़ की दिक़्क़त क्या समझोगे।
ख़ुद की ख़्वाहिशों को तवज्जो देते रहे हरदम,
ख़ैरियत पूछी नहीं तो क़ैफ़ियत क्या समझोगे।-
मेरे इश्क़ का रंग तो हैं सफ़ेद पिया,
अपना बना के रंग दो मोहे लाल पिया।
तुम संग चलो, मैं तुम्हारा साया बनूँ,
तुम हाथ थामो, मैं तुम्हारे रुह की आवाज़ बनूँ।
आँखों में काजल सा बसा लूँ तुम्हारे साए को,
लबों की मुस्कान सा सजा लूँ तुम्हारे नाम को,
तुम शाम कहो तो शब भी तुम पर वार दूँ,
अपने हर सवेरे का आफताब तुम्हें मान लूँ।
तुम्हारी मोहब्बत के आलम में ख़ुद को कुछ यूँ संवार लूँ,
तुम्हारे ख़ामोश लफ़्ज़ों को भी मैं पूरा करूं।
के ये पाक़ दिल मेरा, तुम्हारे इश्क़ में दीवाना हुआ पिया,
तुम क़ुबूल इसे कर, अपने रंग में रंग दो मोहे पिया।
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ये इश्क़ का भी क्या ख़ुमार चढ़ता है
ना ज़नाब
जहाँ छोटी चोट भी बर्दाश्त नहीं होती
वहाँ हर जख़्म खाने को,
तैयार होता ये दिल ।।-
Teri fikr hi hai jo har khayal me rehti hai
warna hume to ye bhi ilm nahi ki aj tareekh kaun si hai-
Kahtae hai ki khawab saja laete hai log pyaar mae, jaswat bhulate hai log pyaar mae, par ye nhi pta tha ki dusro ko jalatae hai log pyaar mae...
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जिसने हक दिया था मुझे मुस्कराने का, उसे शौक है मुझे अब रूलाने का,जो लहरो से बचा कर लाया था किनारो तक, इन्तजार है उसे अब मेरे डूब जाने का..!!
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