ये"ज़िन्दगी"हर रोज अपना एक नया राग सुना जाती है !!
ये समझ मे तो नही आती पर बहुत कुछ समझा जाती है।।-
वो जिसे मानती हो उसकी कसम खिला के देख लो तुम
मोहब्बत मुझ से ना कबूल हुई तो लिखना छोड़ दूँगा मैं-
तीसरे मंज़िला की छत पर,
मैं बैठ कर सच्चाई से नज़रे मिला रही थी।
एक जगह से दूसरी जगह बस नज़रे घूमा रही थी।
अचानक! एक ज़गह मेरी नज़र गड़ी,
दूर खेत में एक झोपड़े पर पड़ी।
ज़िंदगी वहाँ मुस्कुरा रही थी।
एक साथ खाते-पीते,
एक साथ हस्ते-मुस्कुराते।
एक दूसरे के आँसू पोछते।
नज़र आई मुझे
जिंदगी वहाँ सच्ची सम्पत्ति की धुन गुनगुना रही थी।।
फिर एक नज़र एक इमारत पर पड़ी,
वो भी झोपड़े के निकट ही पाई।
यहाँ कमरो की दूरियाँ,
रिश्तों पर भारी पड़ रही थी।
सब अपनी अपनी जिंदगी जी रहे थे।
किसी कमरे में जिंदगी मुस्कुरा रही ,
तो किसी मे आँसू बहा रही थी।
नज़र आई मुझे
जिंदगी वहाँ खोखली सम्पत्ति की बखान गा रही थी।।
शायद!
सच्चाई की ये दो नज़र ही काफी थी।
धन दौलत ही ज़िन्दगी की सम्पत्ति,
इस सोच की मेरी नज़रों में अर्थी उठ चुकी थी।
थोड़ी देर पहले इसी छत पर बैठे मैं इतरा रही थी,
अब इस ज़िन्दगी पर मैं तरस खा रही थी।।-
वो डोली भी मेरी अर्थी के समान थी
जब बापू ने अपना सर्वस्त्र गिरवी रख
अपने सपनो की कीमत चुकाई थी
मेरी डोली दहेज के कंधे पर उठाई थी
बारात नहीं जनाजा ही था वो
जो मेरा शरीर उठाये जा रहे थें
मेरा स्वाभिमान मेरी आत्मा तब ही फना हो गयी थी
जब मेरी मांग सौदे से लाल कराई गई थी
यूँही नहीं हुई थी मेरी मौत
कुचल के मारा गया था मेरे स्वाभिमान को।
छोटे छोटे ख्वाबो को देख कर
मैंने जो प्रेम की एक दुनिया सजाई थी
दहेज प्रेमी तेरे दहेज ने
मेरे अरमानो की एक चिता जलाई थी
घटना से पूर्व सबने मेरे मौत की एक साजिश रचाई थी
एक ने मोल भाव कर मेरी बोली लगाई थी
दूजे मेरे बापू ने खुशी खुशी मेरी कीमत चुकाई थी ।
आखिर मेरे इस मौत का जिम्मेदार कौन है?
आखिर मेरा गुनहगार कौन है?
-हर्षिता की कलम
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हर एक इंसान की अपनी एक पहचान है
गरीब हो या अमीर हो सबकी अपनी शान है
जिंदगी से अपनी सबको कुछ अरमान है
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ज़िन्दगी के पन्ने चाहे जितने भी
काले क्यों न हो,
अगर उसपर हम सफ़ेदी से लिखते है तो
वो लिखावट उभर कर सामने आती है।।-
~ खिलौना जिंदगी का ~
जिंदगी हर पल मुझसे खेलती रही
और मैं बस खिलौना बन कर रह गया ।
बचपन में सबका प्यारा खिलौना था
पूरा परिवार मुझसे खुशी से खेलता रहा ।
जब बड़े हुए जज्बात लोगो से जुड़ने लगे
लोग मेरे जज्बातों से खेलने लगे।
मजबूरियों ने जब दामन थामा तो
तो रिश्ते ही हमारी मजबूरियों से खेलने लगे।
सफर के अगले पड़ाव में जब परिवार बसाया
तो सबके लिए अपने ही अरमानों से हम खेलने लगे।
जब पसीने ने मेरी दौलत कमाई
तो अपने ही मेरी दौलत से खेलने लगे।
जब हड्डियों में मेरी कमजोरी आयी
रिश्तें मेरे मुझे ही झेलने लगे ।
आज अंतिम घड़ियों में
सब उल्टी गिनती मेरी गिनने लगे
अब सब मेरी साँसों से खेलने लगे।
जिंदगी हर पल मुझसे खेलती रही,
और मैं बस खिलौना बन कर रह गया।-
मैं हवा हूँ, मुझे बहने दो।
मैं घटा हूँ, मुझे बरसने दो।
मैं नदी हूँ, मुझे सागर से मिलने दो।
मैं ममता की कली हूँ, मुझे खिलने दो।
मैं खुशियों की सुगंध हूँ , मुझे बिखेरने दो।
मैं मोहब्बत की लहर हूँ,मुझे उठने दो।
मैं उपलब्धियों की पंछी हूँ , मुझे आकाश को चूमने दो।
ऐ पुरुषवादी समाज!
मैं तेरा अस्तित्व हूँ , मुझे जीने दो।-
थक के चूर हो गयी है आश अब तुझे पाने की,
तेरा दिल जो पत्थर था पसीजा ही नही।-