गली के उस कोने पे उस शाम जब भीड़ लगी थी ,
कोई तमाशा चल रहा था ?
जो लोगों में इतनी दिलचस्पी जगी थी ??
जब छेड़ रहे थे गली के आवारा लड़के उसे ,
गुस्से , डर और झुंझलाहट से तब वो रो पड़ी थी ,
नहीं !!
आत्म-रक्षा की बात मत करना ,
उन आवारा लड़को के सामने एक छोटी सी बच्ची खड़ी थी !!
एक शब्द तक कहने की किसी ने जुर्रत तक न करी ,
लोगो की इंसानियत तब क्यों खामोश पड़ी थी ??
फिर वही लोग ,
किसी दरिंदगी की गाथा सुनकर,
आज क्यों हिदायत देने लग गए न्याय की,
जब इतनी ही हमदर्दी थी ,
तो सरेआम उस दिन वो लड़की तमाशा क्यों बनी थी ??
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