मेरी सुबह की टहल में, एक अलग सा सुकून है । बादलों की आस्तीन से जब धूप झाँकती है खेलती है सतोलिया कुछ टूटे बिखरे टुकड़ो संग । मैं चल के पहुँचता हूँ दरख्तों के आसेब में जहाँ मेरी परछाई मुझ से ज़्यादा खुशनुमा है ।।
याद है तुमको एक फूल बनाया था तुमने कॉलेज के पीछे दीवार पे, आकर देखो मुरझा गया है सींचा उसे और रंगा भी, माना नहीं मगर वो शायद हमारी ही तरह, तुम्हारी जिद्द लेके बैठा हुआ है
Happy birthday to gulzar sahab.... काश ... उन्हें भी Facebook या Twitter पे मिल सकतें । बहोत मुश्किल है आप की ग़ज़लों और नज़्मों में से पसंदीदा कीसी एक को चुनना... तो हमने सिर्फ आप को ही चुन लिया... कभी मिले तो नहीं,पर कभी मौका मिला तो मिलना जरूर चाहेंगे...स्वस्थ और दिर्धायु रहे बस यही शुभकामनाए।
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