है! एकलव्य...
हों लक्ष्य पर तेरी यूं नज़र,
जैसे अर्जुन की,
मछली की आंख पर...
तू ध्येय बनाले जीत का,
आरंभ कर जय गीत का,
तू ध्यान अपना ऐसा धर,
तू ज्ञान अर्जित ऐसा कर...
हर एक पथ हर एक डगर,
तुझे भटकाने से भी जाए डर,
चढ़ा धनुष पर प्रत्यंचना,
गर्जायमान आकाश कर...
तेरे बहते रक्त से,
इस बीतते वक्त से,
तू और जाए यूं निखर,
कठिन परिश्रम ऐसा कर...
पत्थर से आए पानी तर,
तू साधना अब ऐसी कर,
आत्म अवलोकन करके तू ,
आत्म निर्माण ऐसा कर...
लक्ष्य प्राप्त करके दिखा,
अवधारणाएं सबकी मिटा,
लक्ष्यभेदी बनकर संवर,
हो पीढी तेरे पथ पर अग्रसर...
"प्रियंका शर्मा द्वारा रचित"
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