हम भाग रहे बस दुनिया में,कभी इस शहर कभी उस शहर,
है हमे भी खबर! सुकून किसी शहर के उन गलियों से हजा़र बार गुजरने पर भी ना मिलने वाला है, क्योंकि शायद सुकून, शांति और खुशियों की परिभाषा हर बार अलग होती गयी है मेरे उम्र के साथ.....
कभी घर के एक कोने मे छोटे बड़े खिलौनो को सजाकर भी हम खुश हो जाते थे, अब वो एहसास भी मजा़क बन गये ..
कभी स्कूल मे कुछ दोस्तों के साथ पक्की वाली दोस्ती मे सुकून मिलता था अब वो भी अजनबी से बन गये..
कभी मनचाहे गानो में, कभी ढेर सारी खरीदारी में , कभी कुछ अच्छा खाने में या कुछ अच्छा बनाने में हर पल मे सुकून था ,प्यार था मिठास था....
बेरंग कोई शहर या घर नही हुआ, वो आज भी डूबा है अपने खूबसूरती भरे लिबास में....
शायद मेरे लिए ही अब कोई शब्द नही बचे हैं जो इन एहसासों को बयां कर सके , और मुझे बता सकें की जिन अलग अलग जगहों मे भाग रहे हैं हम, शायद! ये कोशिश है मेरी , खुद से बस खूद से दूर भागने की....!
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