बादलों का साथ छोड़, वो "बूंद" जब बन जाती है
आकाश से होकर, हवाओं में मिल जाती है
पत्तों पर मोती बनकर, वो पौधे की खूबसूरती बढ़ती है
टहनियों से होकर, जड़ों तक पहुंच जाती है
खुद को मुकम्मल कर, जब वो माटी पर गिर जाती है
उसके स्पर्श की सौंधी खुशबू, फिज़ा में फैल जाती है
बादलों का साथ छोड़, वो "बूंद" जब बन जाती है
धरती को तृप्त कर, हर आेर हरियाली फैलाती है
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