हर आग को चाहिए एक हवा...
लेफ्ट से आये,
राइट से आये,
या आपके फूंक से आये...
इन हवाओं को भी पता है,
कि जला के कुछ भला ही होगा,
कुछ उससे ख़ुद को सेकेंगे...
कुछ उसमें भुट्टे पकाएंगे...
लकड़ियां लगा के उसे उकसायेंगे,
और राख होने तक,
उसके इर्द-गिर्द खेल खेलेंगे...
राख के ठंडे होने पर,
सब निकल लेंगे अपने रास्ते,
और रह जायेगी अकेली राख...
जो कहीं किसी जूठे बर्तन को,
धोने के लिए भी नहीं काम आएगी।
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