मौत के समंदर को तैरकर जाना है,
मंजर जो भी हो इन सैलाबों में,
साँसों की कश्ती किनारे पर लाना है।
ईश्वर कह रहा है भारतवर्ष के अवाम से,
एक लगन से तू कोशिश तो कर,
इस विषाणु से जंग,हमें जीत ही जाना है।-
जीवन को बनाए रखने की प्रकृति की क्षमता हो जाएगी नष्ट, यदि इंसान ना संभला तो आने वाली नस्लें पाएंगी कष्ट...
इंसान ने जो प्राकृतिक चीजों को पहुंचाया है नुकसान, इससे क्या और दुष्परिणाम हो सकते हैं इंसान अभी भी नहीं पाया है जान...
अब धरती मां को भी एक दिन चैन आराम मिलेगा, पेड़ों को गाड़ियों का धुआं नहीं सहना पड़ेगा...
प्रकृतिक चीजों से विवेक पूर्ण करें व्यवहार,
कुछ बुरी चीजों (खाने से संबंधित )के बिना ले जीवन गुजार....
तो पूरी दुनिया को बदला जा सकता है,और कई गलत वायरस से बचा जा सकता है.... जो धर्मों पर लड़ते थे अब छिपकर घर में बैठे हैं ,
अपने धर्म के इंसान ही इंसान से हाथ मिलाने से डर रहे हैं....
समृद्धि सब से हाथ जोड़कर प्रार्थना करती है, करोना से बचने के लिए हाथ है धोना, और मुंह ढकना और आप सब अपना ध्यान रखना।-
कोरोना से मुक्त मेरी माता रानी नव वर्ष पर पधारें
ऐसे शस्त्र अस्त्र लेकर,हर बीमारी से दूर भगावें
जड़ी बूटी रूपी, हिमालय पुत्री शैला देवी 💐
इस नवरात्रे, प्रत्येक के जीवन को सवारें 🙏🏻🙏🏻
@tanya-
सृष्टि के रचयिता ने मानव को स्वच्छ वायु, निर्मल जल और प्रकाश वरदान दिया,
किंतु मानव ने अपने स्वार्थ के लिए इन सब को दूषित किया।
मनुष्य में सदा से ही शासन करने की लालसा रही है,
प्रकृति से छेड़छाड़ करके उसे वैज्ञानिक प्रगति का नाम दिया।
धरती जो हमें सब कुछ प्रदान करती है, मानवीय गतिविधियों ने आज बना दिया उसे विरान ।
कोरोना ने कितनों की ली है जान,
ए मानव, अब तो संभल जा! अब तो बनना छोड़ दे अनजान।
साईनाथ करना हम सब की रक्षा,
कोरोना को हम दे पाएं मात,
कोरोना से हमारी इस लड़ाई में सदा रहना हमारे साथ।-
तुम्हारे साथ "चांद" को "चार" आंखों से,
देखने की "तलब" क्या लगी।
कमबख्त,
अब उसे "तन्हा" देखना गवारा नहीं।✍️✍️✍️-
यह धरती भी कितनी दुखी होगी
जब अपने बच्चो के शव अपनी गोद मे देखती होगी,
यह आसमान भी रोता होगा
जब अपने रोते बिलखते बच्चों को देखता होगा,
यह हवा भी चलना चाहती होगी
अपने बच्चो को सहलाना चाहती होगी,
यह धरती से आसमान तक का सफर इतना दर्दभरा होगा ऐसा हमने कभी सोचा भी नही होगा ।-
जंग जारी है अभी कुछ रोज़ और जारी रहेगी...
सरकार नही सैनिक पे नही अहल-ए-वतन पे ज़िम्मेदारी रहेगी,
इक गुस्ताखी इक गद्दारी तुम्हारी अब पूरे देश पे भारी रहेगी !
जंग जारी है अभी कुछ रोज़ और जारी रहेगी...
खिल उठेगा ये गुलिस्तां कुछ रोज़ जो कम दोस्ती यारी रहेगी,
जीत ज़िन्दगी अबके कि तुझे तेरी जान, जान से भी प्यारी रहेगी !
जंग जारी है अभी कुछ रोज़ और जारी रहेगी...
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पैरो में पड़े छाले जलते बदन से सूरज भी हैरान हो गया..
सड़क हार गई, भूख रो पड़ी, पटरी पर शमशान हो गया..!
गरीबी का अनदेखा हुआ अमीरी का फिर मान हो गया..
बरसे कुछ फूल आसमां से, और मेरा भारत महान हो गया..!!-